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बायकाट अथवा बहिष्कार और स्वदेशी वस्तु व्यवहार की प्रतिज्ञा । २१
बात अन्य शब्दों में इस प्रकार कही जा सकती है, कि अब हम लोगों को अपनी याचकवृत्ति का त्याग करके, अपने दुर्बल वचनों से राज्यसंबंधी हक़ों की भीख मांगने की आदत छोड़ देना चाहिए; और इसके बदले अपने शक्तिमान हाथों से अपनी उन्नति का उद्योग करना चाहिए । इंगलैण्ड देश की बनी हुई चीजों को खरीदकर जो करोड़ों रुपये हम हर साल अंगरेजों को दे देते हैं वे स्वदेशी वस्तु के व्यवहार से स्वदेशभाइयों को देने चाहिए ।
कोई कहेंगे कि इस समय हमारे देश में सब प्रकार की चीजें नहीं बनतीं; ऐसी अवस्था में कुछ विदेशी माल लेना ही पड़ेगा। हां, इसमें संदेह नहीं कि जबतक हमारे देश में सब प्रकार की चीजें बनने न लगे तबतक कुछ न कुछ विदेशी चीजें लेना ही पड़ेगी; परंतु हम कहते हैं कि जब जब आप लोगों को कुछ विदेशी वस्तु लेना हो तब तब इस बात का स्मरण रखिये कि वह वस्तु राजमद से जिनकी आंखें धुंध हो गई हैं और जो हमारी प्रार्थना पर कुछ ध्यान नहीं देते, उनके देश की - अर्थात इंग्लैंड की बनी हुई न हो; वह वस्तु इंग्लैंड के सिवा और किसी देश की हो । वास्तव में यह एक प्रकार का व्यापार युद्ध ही है । इस युद्ध में शस्त्रास्त्रों की जरूरत नहीं; जरूरत है सिर्फ हमारे हृढ़ निश्चय, ऐक्यभाव और निस्सीम देशभक्ति की । इस युद्ध में हमको जितनी सफलता प्राप्त होगी उतनाही हमारे देश का कल्याण होगा। जब हम एक पैसे की भी कोई स्वदेशी वस्तु खरीदेंगे तब उतनाही हमारे देश का लाभ होगा ।" यही परिणाम हम लोगों को इष्ट है; क्योंकि हम इस व्यापार युद्ध से यह सिद्ध करना चाहते हैं कि, यद्यपि हम लोग अपने राज्यकर्त्ताओं के स्वच्छन्द, बेपरवाह और अनुचित बर्ताव को रोक नहीं सकते, तथापि हम लोग अपने राज्यकर्ताओं के देशभाइयों ( अर्थात् अंगरेजों ) के करोड़ों रुपयों के हिन्दुस्थानी व्यापार को मिट्टी में मिला सकते हैं। यदि हिन्दुस्थान के सब लोग यह निश्चय करलें, कि हम स्वदेशी वस्तु ही का व्यवहार करेंगे; और जब कोई स्वदेशी वस्तु न मिल सकेगी तब किसी अन्य देश की लेंगे, इंगलैंड की कदापि न लेंगे; तो, पायोनियर ने अमेरिकन लोगों के संबंध