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स्वदेशी आन्दोलन और बायकाट |
बायकाट अथवा बहिष्कार और स्वदेशी वस्तु व्यवहार की प्रतिज्ञा ।
बंगाल प्रांत के लोगों ने विलायती वस्तु के त्याग की जो अटल for freार्थ में अत्यंत योग्य और प्रशंसनीय है । अब सब लोगों को यह बात विदित हो गई है, कि हम चाहे जितना आन्दोलन करें हम, बहुजन सम्मति को अपने अनुकूल करके, चाहे जितनी नम्रता और शांति मे प्रार्थना करें; परंतु सरकार हमारी प्रार्थना का कुछ भी विचार नहीं करती। ऐसी अवस्था में प्रजा की पुकार को सरकार के कानों तक पहुंचाने के लिये, और अपनी प्रार्थनाओं पर ---- - अपने हक़ों पर सरकार का उचित ध्यान दिलाने के लिये, बंगाल प्रांत के लोगों ने जो उपाय सोचा है। उसका, हिन्दुस्थान के सब लोगों की, अंतःकरणपूर्वक स्त्रीकार करना चाहिए | इतिहास के पढ़नेवाले जानते हैं कि जब कोई राजा अपनी प्रजा की पुकार पर कुछ ध्यान नहीं देता तव प्रजा अत्यंत क्षुब्ध हो जाती हैं I उस समय वह राजा पदच्युत कर दिया जाता है, या उसके अधिकार छीन लिये जाते हैं, या किसी अन्य उपाय से उसको दंड दिया जाना है । इन बातों के उदाहरण, यूप के इतिहास में, बहुतायत में पाये जाने | अंगरेजों ने तो एक समय अपने एक राजा का वध भी कर डाला था ! यद्यपि इन उपायों की योजना, हिन्दुस्थान की वर्तमान दशा में. यहां नहीं की जा सकतीः तथापि इतिहास ही हमारा मार्ग-दर्शक है इतिहास ही ने हम लोगों को और भी अनेक उपाय बतला रक्खे हैं. जिनका प्रयोग प्रसंगानुमार भलीभांति किया जा सकता है। इन्हीं उपायों में से • बायकाट - वहिष्कार - भी एक अच्छा उपाय है, जो अनेक देशों के इतिहासों में पाया जाता है । यह एक रामबाण अस्त्र है जिसका प्रयोग, हम लोग, स्वदेश की यथार्थ उन्नति के लिये भलीभांति कर सकते हैं ।
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इसमें सन्देह नहीं कि हमारी प्रार्थना उचित और न्याय्य है - हमारा कथन सयुक्तिक है; परंतु जब इस देश के प्रवल राजसत्ताधिकारी, केवल स्वार्थवश होकर हमारी प्रार्थना पर कुछ ध्यान नहीं देते, तब हम लोगों
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