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'जनपर व्याख्यान
अर्थ-घुटनों तक लम्बी भुजा और छाती श्रीवत्सका चिन्ह शांतमूर्ति, नग्न तरुण अवस्था, और रूपवान् ऐसी मूर्ति जैनियोंके देवोंकी बनानी चाहिये ।
पद्मकितचरणः प्रसन्नमूर्तिः सुनीच केशश्च । पद्मासनोपविष्टः पितेव जगतो भवेदबुद्धः ॥
( श्लोक ४४ अ० ५८ )
अर्थ-जिसके चरणोंमें कमलका चिन्ह है, प्रसन्न जिसकी मूर्ति है जिसके केश सुंदर और नीचे लटके हुये हैं और जो पद्मासन लगाये हुये हैं ऐसी जगतके पिताके समान बुद्धकी मूर्ति होती है ।
भागवतमें कहा है कि बुद्ध बौद्धमतका चलानेवाला था और दिगम्बरऋषि 'ऋषभ' "जैन मतके प्रचलित करनेवाले थे-
परंतु इस बातकी कि जैन और बौद्ध अलग २ है सबसे बड़ा साक्षी ऋषि व्यास वा वादरायणकी हैं, जिन्होंने शारीरक मीमांसा और महाभारत रचा है. जैसा कि में पहिले कहआया हूं इस ऋषिने ब्रह्मसूत्रके दूसरे अध्यायके दूसरे पादमें ३३ से ३६ सूत्र तक जैनियोंका खंडन किया है (७) और बौद्धपर भी १८ से ३२ सूत्रतक दूषण लगाये हैं ।
महाभारतमें भी जैनियों और बौद्धोंका अलग २ कथन आया है. इस पुराने इतिहास के अश्वपर्वकी अणुगीता में कई मतोंका जिकर भाया हैं और उनमेंसे जैनधर्म और बौद्ध मत दो हैं ( देखो अनुगीता अध्याय ४८ श्लोक २ मे बारह तक ) मैक्स मूल (Max muller ) साहबने जो एक अंग्रेज है उनका जो अनुवाद किया है में वही नकल करता हूं.
46 हम कई प्रकारके धर्म एक दूसरेके विरुद्ध देखते है कोई कहता है कि शरीरकं नाश होनेके पीछे धर्म रहता है, कोई कहता है कि ऐसा नहीं हैं, कोई कहता है कि हरएक वस्तु सन्देह हैं और कोई कहता है कि किसी वस्तुमें नहीं हैं, कोई कहता है कि जो नियम सर्वदा कायम रहने वाला हैं वह सदा कायम नहीं रहता कोई यह भी कहता है कि कोई वस्तु मौजूद रहती हैं, और कोई मानता है कि रहती भी हैं और नहीं भी " इत्यादि ।
इस पर नीलकंठ अपनी राय देता है-
6" कुछ लोग कहते हैं कि शरीरके नाशहोनेक पीछे भी जीव रहता है, और कुछ लोग जैसे कि लोकाथ तथा चार्वाक इसकेप्रतिकूल मानते हैं, हर एक वस्तुमें संदेह है यह स्यादवादियोंका (जैनियोंका ) मत हैं और किसी वस्तुमें सन्देह नहीं है यह तीर्थकों अर्थात् बड़े उपदेशकों की राय है, तोर्थक कहते हैं कि हरएक वस्तु सर्वदा स्थिर नहीं रहती, मीमांसक नाशरहित बताते हैं, शून्यवादी कहते हैं कि कोई वस्तुही नहीं है सर्व