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जैनधर्मपर व्याख्यान.
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अभिमानी हो गया था । राक्षस और पिशाचोंने उससे कहा कि तुलाधार भी जो तुझसे ज्यादा तपस्वी है ऐसा अहंकारी नहीं हैं जैसा कि तू है । जाजली तुलाधारसे शास्त्रार्थं करनेकेलिये बनारस अर्थात् काशीमें गया । तुलाधारने उससे कहा " हे जाजलि ! तूने बहुत समयतक तप किया है, और तो भी तु यह नहीं जानता कि सच्चा धर्म क्या है " फिर उसने अहिंसाको सत्य धर्मका सार बतलाया और कहा “यदि जाजलीको इसमें सदेह है तो वह अपनी जुड़ा अर्थात् जटाके पक्षियोंसे पूछले कि सत्य क्या है" जाजलीके इस प्रश्न पूछने पर सब पक्षी एकस्वर होकर बोल उठे कि " अहिंसा सत्य धर्मकी मूल हैं और इस लोक और परलोकमें शुभफल देती है हिंसा करनेवाले मनुष्यका सब विश्वास जाता रहता है और उसका नाश हो जाता है। जो पुरुष किसी जीवको भय नहीं पहुंचाता वह सबसे निःशंक ( निडर ) रहता हैं परन्तु जो मनुष्य घरमें सर्पकी तरह भय उत्पन्न करता है उसको न तो इस लोकमें धर्म मिलता हैं और न परलोक में " फिर तुलावारने कहा कि - गजा नहुषनें एक बैलका बध किया था जिसका परिणाम यह हुआ कि उसके राज्य में सब ऋषियोंको दुःख सहना पड़ा इन ऋषियोंने १०१
को जो उनपर हिंसा के कारण पड़े थे दूर किया और उनको संसारमे रोगरूपसे फैला दिया । जीव हिंसाका परिणाम भयानक होता है.
महाशय ! वह इसी सम्बादकी टीका है जिसमें नीलकंठ कहता है कि ऋषभके शुभ आचरण से जिसने दयामयी धर्मका उपदेश किया था आर्हत ( जैनी ) मोहित हो गये थे यह ऋषभ उस बामदेवके विरुद्ध थे जो कहता था कि दुःखमें मनुष्य कुत्तेका मांस भी खा सक्ता है
आवयशुन आन्त्राणि पेचे यः पूजयितुं पितृदेवमनुष्यान् ये च मन्त्राणि शुनः इति श्रुतिस्मृतिभ्यां वामदेवस्य श्रेष्टतमस्यापि बीभत्स आचार आपदिश्वमांसभक्षणरूपः प्रदर्शितः ॥
पुराणे वा ऋषभादीनां महायोगिनामाचारं दृष्ट्वा आर्हतादयो मोहिताः पाखंण्डमार्ग मनुगता इत्युक्तम् ॥
अर्थ- कुत्तेका आँतोंका ( अर्थात् मांसको ) पकाया । जिसने पितृदेव मनुष्योंकी पूजाके लिये (अर्थात् तृप्ति के लिये ) कुत्ते की आतं पकाईं । इन श्रुतिस्मृतियोंसे अतिश्रेष्ठ भी वामदेव ऋषिका आपत्ति कुत्तेका मांसभक्षणरूप बीभत्स आचरण दिखलाया है । अथवा पुराण में "ऋषभादिक महायोगियोंका आचरण देखकर आर्हतादिक मोहित होकर पाखण्डमार्गका अनुसरण करनेलगे " ऐसा कहा है । इसी जगहपर नीलकंठ एक स्मृतिका प्रमाण देकर कहता हैं