________________
जैनधर्मपर व्याख्यान.
तीसरी प्रतिमा-इस प्रतिमाका श्रावक नियम करता है कि मैं नियमित समयतक त्रिकाल ( प्रभात, मध्याह्न और सायंकाल ) सामायिक करूंगा।
इसका नाम सामायिक प्रतिमा है। चौथी प्रतिमा-इस प्रतिमाके श्रावकको यह नियम करना होता है। मैं प्रत्येक अष्टमी, और चतुर्दशीको सोलह प्रहरतक शक्तिप्रमाण उपवास करूंगा। इस प्रतिमाका नाम प्रोषधोपवास प्रतिमा है ।।
पांचवी प्रतिमा-इस प्रतिमाका श्रावक नियम करता है कि मैं विना आगमें पकेहुये हरी वनस्पति और बीजको भक्षण नहीं करूंगा।
इसका नाम सचित्तत्याग प्रतिमा हैं. छठी प्रतिमा-इस प्रतिमाके श्रावकको यह नियम करना पड़ता है। मैं रात्रिमें चार प्रकारका माहार नहीं करूंगा और मैं अपनी स्वीसे दिनमें भोग नहीं करूंगा।
इस प्रतिमाका नाम निशिमोजनत्याग प्रतिमा अथवा दिनमैथुनत्याग प्रतिमा है। सातवी प्रतिमा-इस प्रतिमाके श्रावकको नीचे लिखे हुये नियम करने पड़ते हैं.
(१) मैं स्त्रीसे बिल्कुल भोग नहीं करूंगा।
(२) मैं लेप, और शंगार और उन सब बातोकात्याग करूंगा जिनसे काम उत्पन्न हो। इस प्रतिमाका नाम ब्रह्मचर्य प्रतिमा है। आठवी प्रतिमा-इस प्रतिमाका श्रावक नियम करता है।
में सब प्रकारके आरम्भ और व्यापारका त्याग करूंगा। इसका नाम आरम्भत्याग प्रतिमा है । नववी प्रतिमा-इस प्रतिमाका श्रावक नियम करता है कि
मैं अंतरंगे और बहिरंग सब प्रकारके परिग्रहका त्याग करूंगा इस प्रतिमाका नाम परिग्रहत्याग प्रतिमा है। दशवी प्रतिमा-इस प्रतिमाका श्रावक नियम करता हैं कि
मैं किसी संसारी अथवा गृहकार्यमें भला बुरा नहीं कहूंगा और बिना बुलाये भोजन नहीं करूंगा। इसका नाम अनुमतित्यागमतिमा है ।
ग्यारहवीं प्रतिमा-इस प्रतिमाका श्रावक प्रायः साधुके तुल्य होता है। वह या तो ऐलक श्रावक होता है या क्षुल्लक श्रावक।
(1) चौदह प्रकार-१ मिथ्यात्व २ वेद- स्त्री पुरुष नपुंसक ३ राग ४ द्वेष ५ हास्य ६ रति ७ अरति. शोक ९. भय १० जुगुप्सा ११ क्रोध १२ मान ३ मामा १४ लोभ. (२) दश प्रकार-1 क्षेत्र वास्तु ३हिरण्य मुवर्ण ५धन धान्य दासीदास कुप्या भाँड
.