________________
जैनधर्मपर व्याख्यान.
(ग) में सात प्रकारके व्यसनोंसे अलग रहुंगा (१)जुआ खेलना, (२) मांस
भक्षण करना, (३) मदिरा पीना (४) वेश्यासेवन करना ( ५) चोरी
करना (६) शिकार खेलना और (७) पराई स्त्रीसे भोग करना (घ ) मैं प्रतिदिन मंदिरमें जाकर भगवानके दर्शन करूंगा।
इस प्रतिमाका नाम दर्शनप्रतिमा है । दूसरी प्रतिमा-इस प्रतिमाका श्रावक नीचे लिखेहुये नियम करता है. (क) में निम्न लिखित बारह प्रकारके अतिचाररहित व्रत पालूंगा.
(१) मैं किसी त्रसजीवको हिंसा नहीं करूंगा वा दुःख नहीं दंगा । (२) मैं पराई स्त्रीसे भोग नहीं करूंगा। (३) मैं चोरी नहीं करूंगा। (४)में परिग्रहका प्रमाण करूंगा। (५) मैं झूठ नहीं बोलूंगा। (६) मैं दिशाओमे कहांतक जाऊंगा इसका प्रमाण करूंगा. (७) में अनर्थ दंडसे अलग रहूंगा अर्थात् ऐसे कर्म नहीं करूंगा जिससे
कोई मनोरथ सिद्धि नहीं हो परन्तु जिनके करनेसे दंड मिले। (८) में भोग और उपभोगका प्रमाण करूंगा। (१) में प्रतिदिवस प्रमाण करूंगा कि किन २ देशोंमें और किन २ दिशा
आम कहांतक जाना है यानी ऊपर जो १० दिशाबॉमें जानेका प्रमाण किया था उसको दिन ब दिन घटाना । (१०) में सामायिक करूंगा। (११) मैं अष्टमी और चतुर्दशीको उपवास रक्खूगा.
(१२) में चार प्रकारका दान करूंगा। (ख ) मैं समाधिमरण करूंगा अर्थात् मरनेके समय संसार और सम्बंधियोंसे
मोह छोड़ दूंगा। इस प्रतिमाका नाम व्रतप्रतिमा है ।। (१) इन पांचोंका अणुव्रत्त कहते हैं (यानी १ स ५ तक ) (२) इन तीनोको गुणव्रत कहते है ( यानी ६ से ८ तक ) (३) भोग-जो एकबार भोगनेमें आवे जैसे आहार जलादिकः (४) उपभोग-जो वारंवार भोगनेमें भावे जैसे वस्त्र, पात्र स्त्री आदि. (५) आहारदान, अषधदान, विद्यादान, और अभयदान. (६) इन बारोंको शिक्षाबत कहते हैं (यानी ९ से १२ तक)