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जैनधर्मपर व्याख्यान.
मत है जो बुद्ध से भी पहले मौजूद था । उनको चाहिये कि वे हिन्दू शास्त्रोंको पढ़ें और देखें कि जैनमतकी प्राचीनताके विषयमें उनको क्या २ प्रमाण मिलते हैं ॥
अब हम इस बातको जाच करते हैं कि जैनमत ब्राह्मणोंके मतसे निकला है या जैनमत ब्राह्मणमतसे नहीं निकला यह भी पुराने भारतवर्ष में इसी तरह पर पैदा बल्कि दोनों पुराने भारतवर्षके एकही
हुआ जैसा कि ब्राह्मण मत.
से निकले हैं
महाशय ! मुझको यहां यह कहने की आज्ञा दीजिये कि लोगोंको पुराने भारतवर्ष -
लोगोको पुराने का गलत हाल मालूम हुवा है । आप यह कदापि न समझें कि मैं भारत वर्ष कायथार्थ हाल यह बात इसतरहपर कहता हूं जैसे कि कोई अहंकारी विद्वान मालूम नहीं हुआ. कहता हो। मैं न तो कोई विद्वान हीं हूं और न विद्वान की परछाई । किंतु में एक तुच्छ विद्यार्थी हूं और इस विषय में मेरा अभ्यास भी बहुत कम हवा है । कप्तान सी.ई. लुआर्ड (Captain C. E. Luard) साहब मध्य प्रदेशकी मनुष्यगणनाके अफसर हैं. उन्होंने कुछ दिन हुये कि जे डब्ल्यू. डी. जोनस्टनसाहब बहादूर ऐफ आर जी. ऐस (J. W. D. Johnstone, F. R. G. S.) की मार्फत (जो ग्वालियर रियासत के कुल विद्या महकमैके मालिक हैं. और जो मर्दुमशुमारीके अफसर भी थे) कुछ सवालात मेरेपास भेजे. मैंने अपने मित्रांकी सहायता से उन प्रश्नोंका उत्तर तो दिया परन्तु साथ ही मेरे मन में यह इच्छा पैदा हुई कि जैनमतकी प्राचीनताका खोज लगाना चाहिये. उससमय से हमने इसविषय की और ध्यान दिया और जो कुछ हमने अबतक पढ़ा है उससे मैं कहता हूं कि पुराने भारतवर्षका हाल जाननेमें लोगोंने बहुत गलती की है । यह विमर्ष मेरे चित्तमें उत्पन्न हुआ है और मैं उसको छिपाना नहीं चाहता | मनुष्य बहुधा समझते हैं कि पुराने भारत वर्ष में ब्राह्मणोंके मत के सिवाय और कुछ नहीं था परन्तु वे यह नहीं बतलाते कि ब्राह्मणमत किसको कहते हैं । यदि उन लोगोंका यह मतलब है कि ब्राह्मणमत हरवस्तुको कहते हैं जो पुरान भारतवर्ष में प्राचीनकालमें मौजूद थी तो उनकी कल्पना सत्य होती है, परन्तु यदि उनका मतलब यह है कि ब्राह्मणमत वैदिकमतको या वैदिकयज्ञों के मतको कहते हैं तो हम नहीं जानते कि वे इसबात के समझनमें क्यों दोषी नहीं हैं कि पुराने भारतवर्ष में ब्राह्मके मत के सिवाय और कुछ नहीं था । पुराने भारतवर्ष में केवल वेदिकयज्ञ ही नहीं ये । इसमें सन्देह नहीं कि उस समय में ऐसे मनुष्य भी थे जो कहते थे कि
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अग्रीषोमीयं पशुं हिंस्यात् '
अर्थ - पुरुषको ऐसे पशुओंका वध करना चाहिये जिनके देव अभि और सोम हैं ।
परन्तु उसी समय में ऐसे आदमी भी थे जो कहते थे कि
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' मा हिंस्यात्सर्वभूतानि