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जैनधर्मपर व्याख्यान. अब हम यह देखते हैं कि जैनमतको पार्श्वनाथने चलाया या नहीं और पार्श्वजनमतको पार्श्व- नाथको जैनमतका चलानेवाला किसी बौद्ध जैन वा हिंदु-शानोंमें नाथने नहीं चलाया वरन ऋष्यभ देवने लिखा है या नहीं।
बौद्दमत इस विषयमें चुपचाप है और यही आशा कि जासक्ती थी क्यों कि बौद्धबौद्धमतके ग्रंथ मत अंतिम तीर्थकर महाबीरके समयमें हो तो चला है । बौद्धशास्त्रोंमें महावीर स्वामीको केवल निग्रंथोंका प्रधान (मुखिया) लिखा है उनमें यह नहीं लिखा कि महावीर निग्रंथमतके चलानेवाले थे. जहांतक डाक्टर जेकोबी ( Dr. jacobi) शोष कर सके उन्होंने वैसा ही पाया है ॥
जैनशास्त्रोंमें लिखा है कि जब ऋषभदेवने दक्षिा ली तो चारहजार राजाओंने जैनशास्त्र. उनका साथ किया और दिगम्बर होगये परन्तु वे उनके कठिन चारित्र पर हह नहीं रह सके और उनमेंसे ३६३ ने पाखण्डमत चलाये । उनमें एक शुक्र और बृहस्पति भी था. यह कथन तीसरे कालके अंतका है. इसप्रकार जैनशास्रोंके अनुसार ऋषभदेव जैनमतके पहले उपदेशक थे. यह कया कि ३६३ राजा
ओंने भ्रष्ट होकर ३६३ पाखण्डमत चलाये वह प्राचीन कालमें पुराने भारत वर्षकी ज्ञानसंबंधी दशाको प्रगट करती है जैसा कि में उपर कह आया हूं। उस समयमें मानसंबंधी बड़ा प्रचार था और ज्ञानसंबंधी विचारके अगणित केन्द्रस्थान सारे देशमें फैले हुये थे.
अब देखिये कि ब्राह्मणोंके ग्रंथोंमें इस जैनकथाको पुष्ट करने लिये कोई बात हिंदुशास्त्र है या नहीं । भागवत पुराणके पांच स्कंध, अध्याय २-६ में ऋषभकी चर्चा (१) पाई हैं । इस पवित्र ग्रंथमें लिखा है कि १४ मनुओंमेसे स्वयंभू मनु पहला था । जब ब्रह्माने देखा कि मनुष्य संख्या नहीं बढ़ी तो उसने स्वयंभू मनु और सत्यरूपाको पैदा किया और सत्यरूपा स्वयंभू ममुकी भी हुई. उनके प्रियव्रत लड़का हुआ. जिसका पुत्र अग्नीध्र हुआ. अग्नीधके घर नाभिने जन्म लिया । नाभिने मेहदेवीसे व्याह किया और उनसे ऋषभदेव उत्पन्न हुये यह वही ऋषभ हैं जिनको भागवतमें दिगम्बर और जैनमतका चलानेवाला लिखा है। अब देखिये कि ऋषभ कब पैदा हुये । सृष्टिके शुरू में ही जब ब्रह्माने स्वयंभू मनु और सत्यरूपाको पैदा किया. वह उनसे पांचवीं पीढीमें थे और पहले सतयुगके अन्तमें हुये और २८ सतयुग इस असेंतक व्यतीत होगये हैं । इन ऋषभने जैनमतका उपदेश दिया । छठे अध्यायके श्लोक ९ से ११ तक भागवतको रचनेवाला
(१) देखो आगे परिशिष्टका लेख नं. ८ का.