Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
* एत्थ क्खेिवो कायव्वो ।
$ १५. एत्थुसे संकमस्स णिक्खेवो कायव्वो होइ, अण्णहा अपयदणिरायरणमुण पयदत्थजाणावणोवायाभावादो । उत्तं च
[ बंधगो ६
अवगणित्रारण पयदस्स परूवणाणिमित्तं च । संसयविणास तच्चत्थवहारणटुं च ॥१॥ १६. तदो एत्थ णिक्खेवो अवयारेयव्वो त्तिसिद्धं ।
* णामसंकमो ठवणसंकमो दव्वसंकमो खेत्तसंकमो कालसंकमो भावसंकमो चेदि ।
१७. एवमेदे छणिक्खेवा एत्थ होंति त्ति भणिदं होइ । संपहिएदेसिं णिक्खेवाणमत्थपरूवणं थप्पं काढूण णयाणमवयारो ताव कीरदे, णयविहागे अणवगए' तदत्थणिण्णयाणुववत्तीदी ।
* गमो सव्वे संकमे इच्छइ ।
$ १८. कुदो ? दव्वपञ्जायणयद्दयविसय तादो। णेदस्स सुत्तस्स तदुभय विसयत्तमसिद्धं, यदस्ति न तद्वयमतिलंघ्य वर्तते इति नैकगमो नैगमो इति वचनात्तत्सिद्धेः । तदो सामण्णविसेस णिबंधणा सव्वेणिक्खेवा एदस्स विसए संभवंति त्ति सिद्धं ।
* यहांपर निक्षेप करना चाहिये ।
$ १५. अब इस स्थलपर संक्रमका निक्षेप करना चाहिये, क्योंकि इसके बिना प्रकृत अर्थका निराकरण करके प्रकृत अर्थके ज्ञान करानेका दूसरा कोई उपाय नहीं है । कहा भी हैकृत अर्थका निवारण करना, प्रकृत अर्थका प्ररूपण करना, संशयका विनाश करना और तत्त्वार्थका निश्चय करना इन चार प्रयोजनोंकी सिद्धिके लिये निक्षेप किया जाता है ||१|| ९ १६ इस लिये यहांपर निक्षेपका अवतार करना चाहिये यह बात सिद्ध होती है । * नामसंक्रम, स्थापनासंक्रम, द्रव्यसंक्रम, क्षेत्रसंक्रम, कालसंक्रम और भावसंक्रम |
$ १७. इस प्रकार ये छह निक्षेप यहांपर होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब इन निक्षेपोंका विशेष व्याख्यान स्थगित करके पहले नयोंका अवतार करते हैं, क्योंकि नयविभागको जाने विना निक्षेपोंका ठीक तरहसे निर्णय नहीं किया जा सकता ।
* नैगम नय सब संक्रमोंको स्वीकार करता है ।
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$ १८. क्योंकि इसका विषय द्रव्य और पर्याय दोनों हैं । यदि कहा जाय कि नैगम नय द्रव्य और पर्याय इन दोनोंको विषय करता है यह बात नहीं सिद्ध होती, सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि 'जो है वह दोको उल्लंघनकर नहीं पाया जाता' इस उक्ति के अनुसार जो एकको प्राप्त न होकर अनेक अर्थात् दोकी प्राप्त होता है वह नैगम नय है इस निरुक्तिवचनसे नैगमनयका द्रव्य और पर्याय दोनोंको विषय करना सिद्ध होता है । इसलिये सामान्य और विशेषकी अपेक्षा प्रवृत्त होनेवाले सब निक्षेप इसके विषय रूपसे संभव हैं यह बात सिद्ध होती है ।
१. ता० प्रतौ णवगए णयविभागे इति पाठः । २ ता० प्रतौ दस्स तदुभय- इति पाठः ।
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