________________ दस प्रकार की संज्ञाओं (चित्तवृत्तियों) को हम तीन वर्गों में विभक्त कर सकते हैं पहला वर्ग-आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा / दूसरा वर्ग-क्रोधसंज्ञा, मानसंज्ञा, मायासंज्ञा, लोभसंज्ञा / तीसरा वर्ग-लोकसंज्ञा, ओघसंज्ञा। पहले वर्ग की मनोवृत्ति प्राणीमात्र में प्राप्त होती है। मानसशास्त्री जिसे भूख की मनोवृत्ति कहते हैं, उसे जैन आचार्य आहारसंज्ञा कहते हैं। सबमें आहारसंज्ञा होती है। इस संज्ञा के कारण प्रत्येक प्राणी आचरण करता है। हमारे आचरण का बहुत बड़ा भाग आहारसंज्ञा से प्रेरित है। दूसरी है-भय की संज्ञा। हमारे बहत सारे व्यवहार भय के कारण होते हैं। गाय कभी-कभी मनुष्य को देखते ही रौद्र रूप धारण कर लेती है। आदमी ने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा, गाय का काम भी किसी को चोट पहुंचाना या मारना नहीं है, फिर वह रौद्र रूप क्यों? इसका कारण है कि उसमें अनायास ही भय जाग गया। भय है आत्मरक्षा का। आत्मरक्षा में सबसे पहला आवेश भय जागृत होता है। डर लगता है कि मुझ पर कोई प्रहार न कर दे। भय जागते ही सारे शरीर में कंपन पैदा हो जाता है, तनाव पैदा हो जाता है। उसके पीछे भय की वृत्ति काम कर रही है। ... तीसरी है-मैथुनसंज्ञा। मनोविज्ञान की भाषा में यह सेक्स की वृत्ति है। यह वृत्ति प्रत्येक प्राणी में होती है। - चौथी है-परिग्रहसंज्ञा। यह संग्रह करने की मनोवृत्ति है। आप यह न माने कि केवल मनुष्य ही संग्रह करता है। पशु भी संग्रह करते हैं। पक्षी भी संग्रह करते हैं। मधु-मक्खियां संग्रह करती ही हैं। छोटे-मोटे सभी प्राणी संग्रह करते हैं। जैन तत्त्वविदों ने यहां तक खोज की कि वनस्पति भी संग्रह करती है। वनस्पति में संग्रह की संज्ञा होती है। यह परिग्रह की मनोवृत्ति, यह छिपाने की मनोवृत्ति, यह संग्रह की मनोवृत्ति-प्रत्येक प्राणी में होती है। यह एक वर्ग है चार संज्ञाओं का। . जो दूसरा वर्ग है चार संज्ञाओं का, चार चित्तवृत्तियों का, वह भी प्रत्येक प्राणी में प्राप्त है। कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जिसमें वह प्राप्त आचरण के स्रोत . 6