________________ बहुत सारे दैनिक व्यवहार सादि-सान्त होते हैं। उनका आदि भी है और अन्त भी है। दोनों साथ-साथ चलते हैं। ___ हम उस प्रवाह को सोचें जिसके आदि का हमें कोई पता नहीं है। जो अनादि से चला आ रहा है, उसका अनादि-हेतु है। हमारे प्रत्येक आचरण का, प्रत्येक व्यवहार का अनादि-हेतु है, अनादि-कारण है, जो अनादि काल से चला आ रहा है, जिसका आदि-बिन्दु खोजना हमारे लिए संभव नहीं है, किन्तु उसका अन्त किया जा सकता है। साधना का क्षेत्र इसीलिए तो है। अध्यात्म की साधना किसलिए? वह इसीलिए की जाती है कि अनादि-हेतु को खोजा जाये, उसका अन्त किया जाये। जो हेतु है आचरण के पीछे और आचरण की विसंगतियों के पीछे, उसको खोज निकालना अध्यात्म-साधना का प्रयोजन है। जो कारण हमारे आचरण में विभिन्न प्रकार की विसंगतियां पैदा करता है और व्यवहार में संतुलन, समरसता और एकरूपता नहीं रहने देता तथा विभिन्नता उत्पन्न करता रहता है, वह कारण और हेतु अनादि है। उसका अंत किया जा सकता है। उस बिन्दु को खोजना कर्मशास्त्र का प्रयोजन है। . आधुनिक मानसशात्रियों ने आचरण के मूल स्रोतों की खोज की : और बताया कि हमारे दो प्रकार के आचरण होते हैं-सहजात और अर्जित। आचरण के पीछे कोई-न-कोई प्रवृत्ति होती है। कोई आदत होती है। कोई स्वभाव होता है। एक होता है सहजात स्वभाव और एक होता है अर्जित स्वभाव। सहजात वह है जो मनुष्य जन्म से लेकर आता है। अर्जित वह है जो विभिन्न वातावरण में, विभिन्न प्रकार की परिस्थिति में अर्जित होता है। सहजात स्वभाव या सहजात प्रवृत्ति, अर्जित स्वभाव 'या अर्जित प्रवृत्ति-ये आचरण के दो मूल स्रोत हैं। विभिन्न मानसशात्रियों ने इन स्रोतों की भिन्न-भिन्न संख्या गिनाई है। किसी ने तेरह, किसी ने चौदह और किसी ने एक। ये मौलिक मनोवृत्तियां हैं। काम (सेक्स) मनुष्य की एक मौलिक मनोवृत्ति है। लड़ाई, युद्ध, संघर्ष-यह भी मनुष्य की मौलिक मनोवृत्ति है। भूख, समूह में रहना-यह भी मौलिक मनोवृत्ति है। जिजीविषा-जीने की इच्छा-यह भी मौलिक मनोवृत्ति है। आदमी * जीना चाहता है, मरना नहीं चाहता। भगवान् महावीर ने कहा-सब जीना आचरण के स्रोत 7