________________ चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। यह सत्य का प्रतिपादन है। ___ महर्षि पतंजलि ने पांच क्लेश माने हैं। उनमें एक है अभिनिवेश। इसका अर्थ है-सभी जीव जीना चाहते हैं। हम वैदिक ऋषियों से सुनते हैं-'जीवेम शरदः शतम्'-हम सौ वर्ष तक जीते रहें। मनुष्य समझदार प्राणी है, चिन्तनशील प्राणी है। वह सोच सकता है, विचार सकता है, अभिव्यक्त कर सकता है। इसीलिए उसने-'जीवेम शरदः शतम्'-सौ वर्ष तक जीने की कामना प्रकट की। जो सामान्य प्राणी हैं, जिनमें चिन्तन का विशेष विकास नहीं है, अभिव्यक्ति की शक्ति नहीं है, जिनकी भाषा स्पष्ट नहीं है, वे ‘जीवेम शरदः शतम्' जैसी भावना व्यक्त नहीं कर सकते। किन्तु उनके अन्तःकरण में भी यह भावना है कि वे जीते रहें, मरें नहीं। यह जिजीविषा प्राणीमात्र की मौलिक मनोवृत्ति है। महत्त्वाकांक्षा, बड़ा बनने की इच्छा-यह भी मौलिक मनोवृत्ति है। एक गाय जंगल में इधर-उधर घूम रही है। वह दो-चार घंटों तक घूमती रहती है। उसके इस आचरण के कारण की खोज करना कठिन नहीं है। उसके घूमने के पीछे भूख की वृत्ति काम कर रही है। यदि उसमें भूख की वृत्ति नहीं होती तो वह घंटों तक जंगल में चक्कर नहीं लगाती। ___ हम जान सकते हैं आचरणों के मूल कारणों को, मूल स्रोतों को और उनके द्वारा प्रत्येक आचरण और व्यवहार की व्याख्या कर सकते हैं। __भगवान् महावीर ने दस संज्ञाओं का प्रतिपादन किया-आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा, क्रोधसंज्ञा, मानसंज्ञा, मायासंज्ञा, लोभसंज्ञा, ओघसंज्ञा और लोकसंज्ञा। ये संज्ञाएं आचरणों के मूल स्रोतों को खोजने में बहुत सहायक हैं। - हमारे जितने आचरण हैं, उनके पीछे हमारी दस प्रकार की चेतना काम करती हैं, दस प्रकार की चित्तवृत्तियां काम करती हैं। संज्ञा का अर्थ है-एक प्रकार की चित्तवृत्ति। जिसमें चेतन और अचेतन-दोनों मनों का योग होता है, कॉन्शस माइण्ड और सब-कॉन्शस माइण्ड-दोनों का योग होता है, उसे कहते हैं-संज्ञा या संज्ञान। 8 कर्मवाद