Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 16
________________ को, वर्तमान की प्रवृत्ति को, वर्तमान की रचना को नहीं समझा जा सकता। उसको समझने का कोई लाभ भी नहीं है। जो वर्तमान का क्षण है, उसकी पहले की संतति को समझना, यह है कर्मशास्त्र को समझ लेना। कुछ तथ्य ऐसे होते हैं जो अनादि और अनन्त हैं। उनका न आदि है और न अन्त। हमारा अस्तित्व जो है, उसका आदि भी नहीं है और अन्त भी नहीं है। कुछ तथ्य ऐसे होते हैं जो अनादि हैं और सान्त . हैं। उनका आदि नहीं है, किन्तु उनका अन्त अवश्य है। उनके प्रारम्भ का, आदि का हमें पता नहीं है किन्तु वे एक दिन समाप्त अवश्य होंगे। __ अंधकार कव से है, इसका कोई पता नहीं। जब भी दीया जलाया, बिजली जलाई, वह समाप्त हो गया। अंधकार समाप्त होता रहता है। ऐसा भी क्षेत्र मिल जाये जहां आज तक भी सूर्य की रश्मियां नहीं पहुंची, कोई आदमी नहीं पहुंचा है, वहां सदा अंधकार ही रहा है। वहां भी कोई आदमी जाये, दीया जलाये, बिजली जलाये, तो अंधकार समाप्त हो जाता है। अंधकार अनादि है किन्तु वह सान्त है, उसका अन्त होता है, वह समाप्त होता है। जिस व्यक्ति को कभी सम्यकदृष्टि प्राप्त नहीं हुई, जिस व्यक्ति ने कभी संबोधि का अनुभव नहीं किया, जिसकी अविद्या का आवरण कभी समाप्त नहीं हुआ, किन्तु ऐसा कोई योग मिला कि मिथ्यादृष्टि विलीन हो गई, मिथ्यादर्शन समाप्त हो गया, अबोधि मिट गई, अविद्या का आवरण टूट गया। मिथ्यादर्शन का आदि नहीं है किन्तु उसका अन्त अवश्य है। एक बार जिस व्यक्ति को सम्यक्दर्शन हो जाता है, वह रहता ही है, समाप्त नहीं होता। एक बार जिस व्यक्ति का आवरण टूट गया, फिर वह आवरण कभी नहीं आ पायेगा। वह व्यक्ति विद्या के क्षेत्र में चला जायेगा। एक बार भी जिसके मानस की प्राची में संबोधि का सूर्य उग गया, वह कभी अस्त नहीं होगा। आदि तो है, किन्तु अन्त नहीं है। ___ऐसी घटनाएं हैं, जिनका आदि भी है और अन्त भी है। आदमी कितनी बार गुस्सा करता है, कितनी बार क्षमाशील बनता है। हमारे 6 कर्मवाद

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