________________ मूल कारण क्या है? इस प्रश्न की खोज में कर्मशास्त्र की दिशा का अनावरण हुआ। ___ संसार में विभिन्नता है। विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के विभिन्न आचरण और व्यवहार हैं। सबमें विभिन्नता है, पार्थक्य है। सबमें समता का तारतम्य, शक्ति का तारतम्य, आकृति और प्रकृति का तारतम्य, आचरण और व्यवहार का तारतम्य है। यह विभिन्नता, यह तारतम्य सहज ही यह प्रश्न उपस्थित करता है कि यह क्यों? ऐसा क्यों? .यह विभेद क्यों? यह पार्थक्य क्यों? एकरूपता क्यों नहीं? इस विभिन्नता का कोई-न-कोई हेतु होना चाहिए। यदि कोई हेतु नहीं है, अहेतुक है तो सब समान ही होगा। जो भेद दिखाई देता है, जो अन्तर दिखाई देता है, उसका निश्चित ही कोई-न-कोई हेतु होना ही चाहिए। बिना कारण या हेतु के यह विभिन्नता हो नहीं सकती। चाहे प्रकृति की विभिन्नता हो, चाहे चेतन जगत् की विभिन्नता हो, चाहे जड़ जगत् की विभिन्नता हो, सबके पीछे कोई-न-कोई कारण अवश्य है। मानसशास्त्रियों ने इस विभिन्नता के हेतओं को खोजने का प्रयत्न किया। यह आज के युग की बात है। किन्तु हजारों-हजारों वर्ष पूर्व भी इस विभिन्नता को खोजने का प्रयत्न हुआ था। ___महावीर ने धर्मध्यान के चार प्रकार बतलाए-आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय। हम इनमें से दो-अपायविचय और विपाकविचय की चर्चा करेंगे। धर्मध्यान के कारणों को खोजने की एक प्रक्रिया है। कोई विपाक हो रहा है, कोई चीज पक रही है। निष्पत्ति सामने आ रही है। विपाक है तो उसका हेतु भी होना चाहिए। परिणाम है तो उसका कारण भी होना चाहिए। यह कारण है-अपाय। अपायविचय है उस कारण की खोज। कोई भी फलित हुआ है तो उसके पीछे कोई-न-कोई अपाय है ही। कोई दोष हो या कोई गुण हो-कुछ-न-कुछ अवश्य है। हम केवल विपाक को ही सब कुछ नहीं मान सकते। हम विपाक को वर्तमान क्षण का पाक, वर्तमान क्षण की बात मान सकते हैं; कि तु उस विपाक के पीछे रहा हुआ जो हेतु है, अपाय है, जो लम्बा अतीत है, उसे भी हमें 4 कर्मवाद .