Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ पित्त और वात विकृत हो गये हैं। ज्योतिषी कहता है-तुम्हारे ग्रहों की गति विपरीत हो गई है, इसलिए यह रोग है। ___ भूतवादी कहता है-तुम्हारे पर भूत की छाया पड़ गई है, इसलिए यह रोग उभरा है। ___मुनि कहता है-रोग का कारण है अपने किए हुए कर्मों का विपाक। डॉक्टर कुछ और ही कहेगा। वह कहेगा-कीटाणुओं के कारण रोग हुआ है। वहां वात, पित्त और कफ की बात नहीं होगी। रोग कीटाणुज होगा। किसी ओस्ट्रियोपैथी (हड्डियों के विशेषज्ञ) के पास जायेंगे तो वह कहेगा-हड्डियों का संतुलन ठीक नहीं है। पृष्ठरज्जु और अन्यान्य हड्डियों का संतुलन ठीक नहीं है, इसलिए यह रोग उत्पन्न हुआ है। एक ही बीमारी, एक ही रोग, पर उसके कारणों के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण मिलेंगे। चिकित्सा की एक शाखा है-एक्यूपंक्चर। उसके विशेषज्ञ कहेंगे कि शरीर में विद्युत् का संतुलन ठीक नहीं रहा, इसलिए बीमारी हुई है। . अभी-अभी रूस के शरीरशास्त्रीय वैज्ञानिकों ने एक सिद्धांत का . प्रतिपादन किया है-मनुष्य के शरीर में जब विद्युत् का संतुलन ठीक नहीं होता तब बीमारियां पैदा होती हैं। वे विद्युत् की धारा के संतुलन द्वारा, वोल्टेज की कमी और अधिकता के संतुलन के द्वारा, चिकित्सा का प्रतिपादन करते हैं। . . रोग एक है। पर उसके कारण की खोज में आते हैं तो दसों प्रकार के विचार सामने आते हैं। इतना निश्चित है कि मनुष्य कार्य की पृष्ठभूमि को खोजता रहा है और कारण को समझने का प्रयत्न करता रहा है। जो आन्तरिक आचरण है, आन्तरिक घटना है, उसके कारण की खोज आन्तस्किता में जाकर कर सकते हैं। हमारे जितने भी आचरण हैं; हम जो भी प्रवृत्ति करते हैं, एक अंगुली हिलाने से लेकर बड़ी-से-बड़ी प्रवृत्ति या आचरण करते हैं, उस आचरण का मूल स्रोत क्या है? कारण क्या है? हम अंगली क्यों हिलाते हैं? हम क्यों बोलते हैं? हम दूसरों के साथ अच्छा या बुरा व्यवहार क्यों करते हैं? हम गुस्सा क्यों करते हैं? प्रेम क्यों करते हैं? जो भी आचरण हैं, उनका मूल स्रोत क्या है? आचरण के स्रांत 3

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 316