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श्री कामघट कथानकम्
ॐ नमोऽखिलसिद्धेभ्यः, सद्गुरुभ्यस्तु सर्बदा । जिनास्योत्पन्नभाषायै, ज्ञानदा या सदाङ्गिनाम् ॥ १॥
अर्थ :-सब सिद्धों को नमस्कार हो, सद्गुरुओं को तो हमेशा नमस्कार हो। जो प्राणियों को ज्ञान देने वाली है, ऐसी जिनेश्वर के मुख से निकली हुई भाषा (जिनवानी) को नमस्कार हो ।। १ ।।
उद्वाहे प्रथमो वरः किल कलाशिल्पादिके यो गुरुभूपश्च प्रथमो यतिः प्रथमकस्तीर्थेश्वरश्चादिमः । दानादौ वरपात्रमादिजिनपः सिद्धा यदम्बादिमा, सच्चक्री प्रथमश्च यस्य तनयः सोऽस्त्वादिनाथः श्रिये ॥ २॥
विवाह में जो प्रथम वर हुए, कला-शिल्प आदि में जो प्रथम गुरु हुए और जो सर्वप्रथम राजा हुए तथा जो सब से पहले यती (पंचमहाव्रती-साधु) हुए और जो पहला तीर्थेश्वर हुए, दानादि के विषय में जो सब से पहले श्रेष्ठ पात्र हुए और जो सब से पहला जिनेश्वर हुए और जिनकी माता सिद्धाओं में पहली सिद्धा है और जिनका लड़का पहला चक्रवती ( भरत ) है, वे भगवान आदिनाथ श्री (सुख-सम्पत्ति) के लिए हों ॥२॥
इत्थमादौ मंगलाचरणं कृत्वाथ किश्चिद्धममहिमानं दर्शयति यथाइस तरह आरंभ में मंगलाचरण करके अब कुछ धर्म की महिमा को दिखलाते हैं, जैसे :धर्मश्चिन्तामणिः श्रेष्ठो, धर्मः कल्पद्रुमः परः । धर्मः कामदुधा धेनुः, धर्मः सर्बफलप्रदः ॥ ३॥
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