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श्री कामघट कथानकम्
फिर राजाने अत्यन्त आग्रह पूर्वक कहा-जो कुछ पहले हो गया है, वह आपको कहना ही पड़ेगा, इत्यादि अधिक आग्रह से युक्त राजा की बात सुनकर मन में कहने की इच्छा न होने पर भी राजा के अत्यन्त आग्रह से मंत्रीने सागरदत्त सेठ की थोड़ी सी बात कह सुनाई, परन्तु राजाने तो थोड़ा कहने से ही अपनी बुद्धि की कुशलता से सारा हाल समझ लिया। उसके पीछे उस धनी के साथ अनाचार और अनीति आदि कार्य से बहुत क्रोधित होकर राजाने उसी समय सेठ को बुलवा कर बोला-रे नीच, पराई स्त्री और धन का लोभी होकर तुम इसतरह भारी पाप करते हो। इसतरह अनेक प्रकार से निन्दा, भर्त्सना, धिक्कार आदि बातों से उसे फटकार कर उसके पास से मंत्री का धन मंत्री को दिलाया। फिर उस अन्यायकारी को राजा चोर का दण्ड देने लगा, तब दयालु मंत्रीने राजा के पांवों में पड़कर बोलाहे राजन् , यह मेरा महान् उपकारी है। इसके प्रसाद से ही यहां आपके पास आकर जो आपकी लड़की से मैंने विवाह किया, यह सब इसका ही प्रसाद है। इत्यादि कहकर मंत्रीने सेठ सागरदत्त को जिन्दा छोड़वा दिया। क्योंकि, बड़ों के ये ही लक्षण हैं।
तदुक्तं चकहा, भी हैचेतः सार्द्रतरं वचः सुमधुरं दृष्टिः प्रसन्नोज्वला, शक्तिः क्षान्ति-युता मतिः श्रित-नया श्रीर्दीन-दैन्यापहा । रूपं शोल-युतं श्रुतं गत-मदं स्वामित्वमुत्सेकतानिर्मुक्तं प्रकटान्यहो ! नव सुधा-कुण्डान्यमून्युत्तमे ॥ ७३ ॥
अहा ! उत्तम पुरुष में नौ अमृत के कुण्ड प्रत्यक्ष हैं, दया से पिघला हुआ हृदय, सुन्दर वचन, प्रसन्नता युक्त दृष्टि, क्षमता (सहनशीलता) युक्त शक्ति, नीतियुक्त बुद्धि, दुःखी-दरिद्रों के दैन्य निवारण के लिए लक्ष्मी, सदाचार युक्त रूप, घमण्ड रहित शास्त्र-ज्ञान, अभिमान रहित स्वामीपना ।। ७३ ॥
अनेन कारणेन प्रत्युत सत्कारसम्मानदानपुरस्सरं मन्त्री त सागरदत्तष्ठिनं स्वस्थाने प्रेषयामास । अथ मन्त्री ताभिश्चतसृभिर्जायाभिः सह दोगुन्दुकदेववद्विषयसुखान्युपभंजानस्तत्र कियन्ति दिनानि सुखेनास्थात् । अथैकदा पाश्चात्यरात्रौ स धर्मबुद्धिमन्त्री नित्यधर्मकर्मसाधनाय जागरितः सन् सुभावेन तद्विधाय पश्चान्मनसि विचारयामास । अथ श्वशुरालये संतिष्ठमानस्य मे बहूनि दिनानि व्यतीयुः । अतःपरमत्र निवासो मे गर्हणीयो हास्यहेतुलॊकविरुद्धापमाननिलयश्चातएवायुक्तोऽस्ति ।
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