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श्री कामघट कथानकम
वह दूत भी आकर अद्भुत वाणी के द्वारा उस राजाको ऐसा कहा-हे राजन् ! मेरे मालिक बड़े प्रतापी हैं, उनके आगे कोई भी बलशाली टिक नहीं सकता, इसलिए प्रति दिन उनका तेज बढ़ता जाता है, मैं यह जानता हूं कि किसी भी माताने इनके समान दूसरा लड़का संसार में पैदा नहीं किया। जो उनकी आज्ञा को नहीं अंगीकार करता है उसका सारा राज्य इसतरह जल जाता है जैसे भारी ओले (बरफ) बन को जला देते हैं। कौन ऐसा वीर है जो उनके प्रताप को सह सके ? जिसने मेरे स्वामी के आगे गर्व किया उसका सारा गर्व मेरे स्वामीने चकना-चूर कर दिया। इसलिए आप वहां जाकर उनसे सन्धि ही कर लें, नहीं तो लड़ना पड़ेगा, स्वामीने ऐसी ही हुक्म दी है और वही आपके पास बोलने को आया हूं। यह यदि आपको मंजूर है तो लड़ाई के मैदान में जाना ही है, नामंजूर हो तो दांतों के तले तिनका रख कर नगर से बाहर हो जाना चाहिए। इसतरह दूत की बात को सुनकर कमान चढ़ाकर लाल लाल आखें करके श्रीपुर का स्वामी पापबुद्धि राजा बोला-मैं क्षत्रिय हं, मरना तो एकबार है ही, इसलिए पहले के सारे यश को विनाश कैसे करूं इसलिए हे दतवर। जैसे अग्नि में फतिंगा अपने आप ही गिर कर विनाश हो जाता है, उसी तरह तुम्हारे स्वामीने भी यह मरने का ढिढ़ोरा खुद ही पिटवा दिया है। इस लिए वह किसतरह कुशल पूर्वक अपने घर को जासकता है ? अरे ! तुम जाओ और अपने मालिक को शीघ्र कह दो-यदि तुम्हारा राजा युद्ध करने के लिए तैयार होकर संग्राम भूमि में आने की इच्छा करता है तो फिर सूर्योदय समय से ही युद्ध करने की बात तुम्हारे स्वामीने ठान दी, इसलिए उसके जितने दलबल हो, वह सब लेकर उसे तुरत आजाना चाहिए, इसमें देर नहीं करनी चाहिए। मैंने ये नगर के दरवाजे संध्या काल में नगर की रक्षा के लिए बन्द करवा दिए थे, सुबह में दरवाजे खोलकर युद्ध के बाजे-गाजे के साथ तुम्हारे स्वामी के साथ अच्छी तरह लडूंगा। इसतरह पापबुद्धि राजा की बात सुनकर दूतने शीघ्र आकर वह सारा हाल अपने राजा को सुना दिया। फिर पापबुद्धि राजा सुबह में चतुरंगिणी सेना तैयार कर अपने नगर से बाहर निकला, किन्तु मार्ग में अपशकुन हो गया फिर भी गर्व से मत वाला वह उसे नहीं गिना, क्योंकि घमण्ड के अधीन होकर खराब आदमी लोगों के द्वारा मजाक उड़ाने लायक बेकार काम क्यामही करते ?
यतः-- क्योंकिउरिक्षप्य टिटिभः पाद-मास्ते भङ्ग-भयाद्भुवः । स्वचित्त-कल्पितो गर्वः, क्वाङ्गिनां नोपयुज्यते ? ॥ ७७ ॥
पृथिवी के टूक टूक हो जाने के भय से टिटही ( एक पक्षी) अपने पांव को ऊपर करके ही रहता है। प्राणियों के अपने मन में आरोपण किया हुआ गर्व कहां ठीक नहीं है? ।। ७७ ।।
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