Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 124
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १११ श्री कामघद कथानकम् जन्मन्येकत्र दुःखाय, रोगः सर्पो रिपुर्विषम् । अपि जन्मसहस्रेषु, मिथ्यात्वमचिकित्सितम् ॥६६॥ रोग, सर्प, शत्रु और विष ये एक जन्म में ही दुःख दायक हैं, लेकिन इजार जन्मों में भी मिथ्यात्व ( असत्य धर्म ) अचिकित्सित ( लाइलाज ) है ॥६६॥ अतः सर्वसंपद्धतुकं स्वर्गापवर्गभवनैककारणमिहापि सर्वसौख्यप्रदायकमेवंविधं सम्यक्त्वं भजत । इसलिए, सब संपत्ति का कारण, स्वर्ग और मोक्ष होने का एक कारण, यहां भी सभी सुखों को देने वाले सम्यक्त्व की सेवा करो। यतःक्योंकिमूलं बोधि-द्रुमस्यैतद् द्वारं पुण्य-पुरस्य च । पीठं निर्वाण-हर्म्यस्य, निधानं सर्वसंपदाम् ॥ ७ ॥ यह ( सम्यक्त्व ) ज्ञानरूपी झाड़ की जड़ है, पुण्य-नगर में जाने के लिए दरवाजा है, मोक्षरूपी महल में बैठने के लिए पीढ़ा है और सारी सम्पत्तियों का खजाना है ।।६७॥ तथा चऔर भीगुणानामेक आधारो, रत्नानामिव सागरः । पात्रं चारित्र-वित्तस्य, सम्यक्त्वं श्लाघ्यते न कैः ? ॥ ६ ॥ जैसे सभी रत्नों का आधार समुद्र है वैसे सम्यक्त्व सारे गुणों का आधार है और चारित्र रूपी धन का पात्र है, अतः सम्यक्त्व की तारीफ कौन नहीं करता ॥१८॥ एवंभृतं सम्यक्त्वमङ्गीकृत्य देवगुरुधर्मान् सम्यक सुपेन्य च शिवसुखं भवन्तः साधयन्तु । विषयविकारानपनीयाणुत्रतादीन् द्वादशव्रतानङ्गीकुरुत यत एष एव मुक्तेः शुद्धपथः । पुनर्यः प्राणी प्रेम्णा पंचमहाव्रतं परिपालयति, स तु भवान्तं विधायोत्तमा मोक्षगतिं प्राप्नोति । येन प्राणी राग For Private And Personal Use Only

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