Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 123
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० श्री कामघट कथानकम पुनरत्र वृद्धावस्थायां स्वार्थ विना स्ववल्लभास्तनयादयोऽप्यवज्ञां कुर्वन्ति, तदपि महत्कष्टमेव जनो भजति । फिर, यहां बुढ़ापा में अपना मतलब के बिना अपनी स्त्री और लड़के आदि भी अनादर करते हैं, वह भी महान् कष्ट ही है, जिसे लोग भोगते हैं। उक्तञ्चकहा भी हैगात्रं संकुचितं गतिर्विगलिता दन्ताश्च नाशं गताः, दृष्टिभ्रंश्यति वर्द्धते बधिरता वक्त्रं च लालायते । वाक्यं नैव करोति बान्धवजनः पत्नी न शुश्रूषते, धिक् कष्टं जरयाऽभिभूतपुरुषं पुत्रोऽप्यवज्ञायते ॥ ६४ ॥ शरीर सिकुड़ गया, चलने-फिरने की शक्ति भी बहुत कमजोर पड़ गई, दांत टूट गए, आंखों की रोशनी कम हो गई, बहरापन बढ़ने लगा और मुंह से लार टपका पड़ती हैं, सगे-संबन्धी कहे हुए नहीं करते और स्त्री भी सेवा नहीं करती, ऐसे बुढ़ापा से पीड़ित पुरुषों को धिक्कार है ! हाय ! और इस से अधिक कष्ट क्या है कि उसे प्रायः पुत्र भी अनादर करता है ।। ६४ ।। ततो भो भन्यप्राणिनः ! यूयं भवभ्रमणहेतुं मिथ्यात्वभ्रमं परित्यजत । इसलिए, हे भव्य प्राणियो ! तुम लोग संसार में जन्म-मरण लेने का कारण मिथ्यात्व-संदेह को छोड़ दो। यतःक्योंकिमिथ्यात्वं परमो रोगो, मिथ्यात्वं परमं विषम् । .. मिथ्यात्वं परमं शत्रु-मिथ्यात्वं परमं तमः ॥ ६५ ॥ मिथ्यात्व महान रोग है, मिथ्यात्व महान् विष है, मिथ्यात्व भारी वुश्मन है और मिथ्यात्व धोर अन्धकार है ।। ६५॥ अन्यच्च :और भी: For Private And Personal Use Only

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