Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 107
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६.४ श्री कामघट कथानकम सुन्दर्या कपाटे समुद्घाटिते, तयोपलक्षितश्च मन्त्री । ततः श्रीयुगादिदेवप्रासादे समागत्य प्रवहण - चलनकालादारभ्य समुद्रान्तः पतनं यावत्तेन संबन्धः प्रोक्तः । तदा सौभाग्यसुन्दर्याऽपि स्वपतिमुपलक्ष्य कपाटे समुद्घाटिते । ततो मन्त्री गणिकाया गृहे समागत्य सफलकप्राप्ति - समुद्रतरणादारभ्य तद्गंभीरपुरप्राप्ति निवासस्थान विलोकन भोजनग्रहणनिमित्त' नगरमध्यागमनं यावद् वृत्तान्तमुक्तवान् । तदा तया तृतीयया रलसुन्दर्याऽपि तथैव मन्त्रिमुपलक्ष्य कपाटे समुद्घाटिते । ततस्तास्तिस्रोऽपि भार्याः स्वस्ववृत्तान्तं मन्त्रिणे कथयामासुः । ततः प्रमुदितेन राज्ञाऽपि निजराज्यार्द्ध स्वकन्यां शीलसुन्दरीञ्च मन्त्रिणे दच्या साश्चर्य पृष्टम् – भवानब्धौ कथं निपतित इति १ मया तु तवातिचातुर्यं विलोक्यते, अतोऽहमेवं संभावयामि केनचिदन्येन कपटिदुष्टेन निपातितो भविष्यतीति । अथ त्वं स्वं यथाभूतं वृत्तं मया निगद, तन्निशम्याहं तद्योग्यं दण्डं दास्यामि, येनाग्रे कोऽप्यन्यो दुष्टात्मैवंविधमकार्यं न कुर्यात् । तादृशानि राज्ञो वचनान्याकर्ण्य करुणापरो मन्त्री किंचिन्मौनमवलंब्योक्तवान्, हे राजन्नहं स्वात्मनोऽसावधानत्वेनैव निपतितः । यत उक्तं महतां कोऽप्यशुभं कुर्यात्तथाऽपि ते तु तस्य शुभमेव कुर्वन्ति । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घूसकर सके । अनन्तर इसके बाद उसने अपना शील ( इज्जत ) खराब होने के डर से किसी अन्दर के मकान में किवाड़ लगा दिए और उसके चरित्र के माहात्म्य से वे किवाड़ किसी तरह भी नहीं उघड़ पहले व्याही हुई मंत्री की स्त्री वह विनयसुन्दरी भी श्रीदत्तकुंभार के घर में रही हुई किसी कामी राजकुमार के द्वारा हँसी-मजाक आदि से परेशान होकर अपना शील ( इज्जत ) रक्षा के लिए वह पतिव्रता उसी तरह कपाट लगाकर बैठ गई । इधर यह समाचार राजाने अपने दूतों के द्वारा सुना, तब अपना नगर में अनर्थ होने के डर से ढ़िढोला पिटवाया कि—जो कोई इन तीनों किवाड़ों को खोलेगा और तीनों स्त्रियों को बोलावेगा, उसको राजा अपना आधा राज्य और अपनी लड़की देगा। इधर वह मंत्री अपने रहने के लिए जगह को देखकर और भोजन लेकर जबतक उस बगीचा में गया तबतक उसने वहां अपनी स्त्री रत्नसुन्दरी नहीं देखी । उस समय उस वन में इधर उधर ढूढ़ने पर भी जब वह कहीं नहीं मिली, तब व्याकुल होकर वह नगर में घूमने लगा । इधर उसने पटह की उद्घोषणा ( ढिढोरा ) सुनी और मन में सब अपनी ही बात समझकर पटछ को छू कर बहुत लोगों के साथ होकर मंत्री कुंभार के घर में आगया । वहां दरवाजे के पास आकर मंत्रीने श्रीपुरनगर से निकलने के समय से लेकर गंभीरपुर में पहुँचना विनयसुन्दरी का देवकुल में छोड़ने तक सभी समाचार कह सुनाया। यह सुनकर बिनयसुन्दरीने शीघ्र कपाट खोल दिया और उसने मंत्री को पहचान लिया। वहां से श्री ऋषभ देव के मन्दिर में आकर नाव के चलने के समय से लेकर समुद्र के बीच गिरने तक का समाचार उसने कह सुनाया । For Private And Personal Use Only

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