Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 106
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम ६३ शील सारे गुणों के समुदाय रूपी मस्तक में मणि समान है, शील विपत्ति से रक्षा करने वाला है, शील सुन्दर आभूषण है, शील को मुनि लोग अच्छी तरह धारण करते हैं। कठिन से हटाने लायक जो अधिक दुःख रूपी अग्नि उसको शमन करने में वर्षा काल के मेघ से भी अधिक शक्तिशाली शील है, शील सब सुखों का एक कारण है, इसलिए, शील को धारण करना किसका अभिमत नहीं ? अर्थात् सबों की राय है।॥ ७० ॥ अपि च और भी :व्याघ्र-व्याल-जलानलादि-विपदस्तेषां व्रजन्ति क्षयं, कल्याणानि समुल्लसंति विबुधाः सान्निध्यमध्यासते । कीर्तिः स्फूर्तिमियति यात्युपचयं धर्मः प्रणश्यत्यघं, स्वनिर्वाण-सुखानि संनिदधते ये शीलमाविभ्रते ॥ ७१ ॥ जो लोग शील को धारण करते हैं, उनके बाघ, सर्प, जल, अग्नि आदि की विपत्तियां नाश हो जाती हैं, कल्याण होते हैं और देवता पास में आते हैं, कीर्ति फैलती है और धर्म बढ़ता है, पाप विनाश होता हैं, स्वर्ग और मोक्ष के सुख सामने आते हैं ॥ ७१ ॥ - अथ तया स्वशीलभंगभयात्कश्चिदपवरकं प्रविश्य कपाटे दत्ते, तच्छीलप्रभावाच्च ते कथमपि नैव समुद्घटिते । अथ प्राक्परिणीता मन्त्रिपत्नी सा विनयसुन्दर्यपि श्रीदत्तकुम्भकारगृहस्थिता, केनापि कामिना राजपुत्रेण हास्यादिना पराभूता सती, स्वशीलरक्षायै साध्वी तथैव कपाटे पिधाय स्थिताऽऽसोत् । इतोऽयं व्यतिकरो राजलोकसकाशाद्राज्ञा ज्ञातः, ततः स्वनगरानर्थभीतेन राज्ञा पटहोद्घोषणा कारिता-यः कश्चिदेतत्कपाटत्रयमुद्घाटयिष्यति, स्त्रीत्रयं च वादयिष्यति, तस्य राजा स्वराज्याच राजकन्यां च दास्यति । इतः स मन्त्री निजनिवासार्थ स्थानं विलोक्य भोजनं च गृहीत्वा यावत्तत्रोपवने समागतस्तावत्तत्र तेन निजस्वी रत्नसुन्दरी नावलोकिता। तदेतस्ततस्तद्वने विलोकिताऽपि परं क्वापि सा न लब्धेति विह्वलः सन् स नगरमध्ये परिवभ्राम। इतस्तेन सा पटहोद्घोषणा श्रुता मनसि सर्व स्वव्यतिकरं च विज्ञाय पटहं स्पृष्ट्वा बहुजनपरिवृतो मन्त्री कुम्भकारगृहे समागतः। तत्र च द्वारपा। समागत्य तेन श्रीपुरनगरनिर्गमनकालादारभ्य गंभीरपुरप्राप्तिविनयसुन्दरीदेवकुलमोचनावधिः सर्वोऽपि वृत्तान्तो निगदितः। तन्निशम्य शीघ्र विनय For Private And Personal Use Only

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