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श्री कामघट कथानकम् मन्त्रिधनस्त्रीयॆया ज्वलन् स्वदेशीयत्वात्केनचिजनेन मन्त्रिणमाकारयामास। यदा मन्त्रिणापि निजश्वशुराय राज्ञे प्रोक्तं यदहं यास्यामि स्वदेशं, तदा पुना राज्ञाऽप्यर्द्धराज्यमूल्यप्रमाणानि स्वर्णमाणिक्यादिरत्ने त्वा यष्टौ प्रवहणानि तस्य समर्पितानि । ततः समुद्रतटं यावद्राजा तं प्रेषयितं समायातः, तत्र राज्ञा स्वसुता सुष्ठुशिक्षया शिक्षिता, तद्यथा-हे सुते ! मदीयस्य जामातुश्च कुलस्य येन प्रकारेण शोभा भवेत्तनैव प्रकारेण त्वया श्वश्रुश्वशुरयोज्येष्ठतत्पन्योश्च सुविनयः करणीयः। भर्जुरुक्त्यनुसारेणेव समस्तं कार्यञ्च कर्त्तव्यं, अनुचरवर्गातिथिप्रभृतीनां यथायोग्यमादरसम्मानौ च विधातव्यौ, सपल्या साकं स्वभगिनीतोऽप्यधिकतरप्रेम्णा वर्तितन्यं, किमहं बहुपदिशामि ! तत्राखिलं शुभमेव विरचनीयमित्यादिकाः सुशिक्षाः सुतायै प्रदाय जामातरं च सम्यक् स्नेहेन संभाष्य संप्रेष्य च नृपः स्वस्थानमाजगाम । ततस्तौ मन्त्रिव्यवहारिणौ समुद्रमध्ये चलितौ । अथ स श्रेष्ठी मन्त्रिणो रनभृतानि प्रवहणानि रूपवती पत्नीं च दृष्ट्वा लोभदशां प्राप्तः सन् चिन्तयति स्म -अस्य मन्त्रिणः पल्यादिसर्वसंपत्तिर्ममैव चेत्स्यात्तर्हि जगति मन्ये स्वजन्म कृतार्थम् । अतिलोभित्वेन तेनैवंविधं दुष्ट-कर्म विचारितम् । ____ अब इस तरह ( मंत्री ) की धन-सम्पत्ति को देखकर सागरदत्त नाम का सेठ अपने मन में जलने लगा। उसके बाद वह सेठ अपना बाकी माल को बेचकर वहां के दूसरे मालों से जहाजों को भर कर पीछे मंत्री के धन-स्त्री की डाह से जलता हुआ स्वदेशीय होने से किसी आदमी के द्वारा मंत्री को बुलावा भेजा। जब, मंत्रीने भी अपना ससुर राजा को कहा कि मैं अपना देश जाऊंगा, तब फिर राजाने भी अपने आधे राज्य के मूल्य बराबर सुवर्ण, रत्न-माणिक्य आदि से आठ जहाज भर कर उस ( मंत्री ) को दिया। फिर समुद्र के किनारेतक राजा उसको भेजने के लिए आया, वहां, राजाने अपनी लड़की को अच्छी शिक्षा दी, जैसे :-हे वत्से, मेरे और मेरे जमाई के कुल की शोभा जिसतरह हो सके उसी तरह तुमको सास और ससुर को, भैसुर और जेठरानी को अच्छी तरह विनय करना और पति के कहे अनुसार ही सारे काम करना, एवं नौकर-चाकर और अतिथि आदिको जहाँतक बन सके आदर और सम्मान करना, सौतिन के साथ अपनी बहिन से भी अधिक प्रेम से व्यवहार रखना, अधिक मैं क्या सिखावन दूं ? वहां हर तरह से अच्छा ही करना, इत्यादि अच्छी सिखावन लड़की को देकर जमाई को भी अच्छी तरह प्रेम से समझा बुझाकर और भेजकर राजा अपना स्थान में लौट आया। तब मंत्री और सेठ समुद्र के बीच में चलने लगे। अब, वह सेठ मंत्री के रत्नों से भरे जहाजों को और सुन्दरी स्त्री को देख कर लोभ दशा को प्राप्त होकर बिचारने लगा-कि-इस मंत्री की स्त्री आदि सारी संपत्ति मेरी ही यदि किसी तरह हो जाय तो मैं संसार में अपना जन्म सफल मानूं। अत्यन्त लोभ में आकर उसने ऐसा दुष्ट कर्म विचार किया।
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