Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 89
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम देना और लेना, रहस्य बात कहना और पूछना, एवं खाना और खिलाना यह छः प्रकार का प्रेम का लक्षण है ।। ४१ ॥ तथा च: - और इसी तरहक्षीरेणात्मगतोदकाय हि गुणा दत्ताः पुरा तेऽखिलाः, क्षीरे तापमवेक्ष्य तेन पयसा ह्यात्मा कृशानी हुतः । गन्तुं पावकमुन्मनस्तदभवद् दृष्ट्वा तु मित्रापदं युक्तं तेन जलेन शाम्यति सतां मैत्री पुनस्त्वीदृशी ॥ ४२ ॥ दूध और पानी की मैत्री दिखलाते है : पहले दूधने अपने में रहे जल ( मित्र ) के लिए अपना सब गुण दे डाला, फिर दूध में ताप ( उफानजलन) देख कर उस (मित्र) जलने अपनी आत्मा को अग्नि में हवन कर दिया। फिर अपने मित्र (जल) के संकट (अग्नि में हवन होते ) को देखकर, दूध व्याकुल होकर अग्नि में जाने के लिए तैयार हो गया, फिर उस ( मित्र ) जल से मिलकर दूध शान्त हो गया-नीतिकार कहते हैं कि-सज्जनों की दोस्तीमैत्री ऐसी ( दूध और पानी की जैसी) होनी चाहिए ।। ४२ ।। ___ अथैवं मैत्री दर्शयन्नेकदा तेन सागरदत्तेन मन्त्रिणं प्रति प्रोक्तं-पृथक् पृथक् प्रवहणस्थयोरावयोः का प्रीतिः ? अतस्त्वं मम प्रवहणे समागच्छेति धूर्तश्रेष्ठिवचनरञ्जितः सरलस्वभावो मन्त्री तद्यानपात्रे गतः। तदा सागरदत्त नोक्तम्--यद्यावां वाहनप्रान्ते समुपविश्योल्ललजलधिकल्लोललीलां पश्यावस्तदा वरं, मन्त्रिणाऽपि तदङ्गीकृतम् । यथावसरं प्राप्य लोभाभिभूतेन पापिना तेन सागरदत्त न मन्त्री समुद्रान्तः पातितः। मन्त्रिणा तु पततैव पंचपरमेष्ठिनमस्कारस्मरणानुभावेन फलकं लब्धम् । अब, एकबार इसीतरह मित्रता को दिखलाते हुए उस सागरदत्त सेठने मंत्री के प्रति बोला-अलग अलग जहाजों के रहने से हमारी और आप की मित्रता क्या ? इस लिए, तुम मेरे जहाज पर चले आओ, इसतरह की धूर्त सेठ की. बात से खुश होकर सरल-सीधा (भोला) स्वभाव वाला मंत्री उसके जहाज में चला गया । तब, सागरदत्तने कहा-यदि हम दोनों जहाज के किनारे बैठकर उछलते हुए समुद्र For Private And Personal Use Only

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