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श्री कामघट कथानकम्
यह नमस्कार मंत्र अपूर्व कल्पवृक्ष है और यह अलौकिक चिन्तामणि है, जो इसको सर्वदा ध्यान करता है, वह परिपूर्ण सुख-शान्ति पाता है ।। ५५ ।।
तथा चऔर इसीतरहनवकारिक अक्खरो, पावं फेडेइ सत्त अयराणं । पण्णासं च पएणं, पंचसयाइं समग्गेणं ॥ ५६ ॥ (संस्कृत छाया)
- नवकारस्यैकमक्षरं पापं स्फोटयति सप्त सागराणाम् ।
पञ्चाशच्च पदेन पञ्चशतानि समग्रेण ।। ५६ ॥ नवकार का एक अक्षर सात सागरोपम पापों को नष्ट करता है और उसका एक पद पचास सागरोपम पापों को नष्ट करता है तथा सारा पदापांच सौ सागरोपम पापों को नष्ट करता है।५६ ।।
अन्यच्चऔर भीजो गुणइ लक्खमेगं, पूएइ विहिणा य नमुक्कारं । तित्थयरनामगोयं, सो बंधइ नथि संदेहो ॥ ५७ ॥ ( संस्कृत छाया)
यो गणयति लक्षमेकं पूजयति च विधिना नमस्कारम् ।
तीर्थकर-नाम-गोत्रं स बनाति नास्ति सन्देहः ॥ ५७ ॥ जो विधिपूर्वक नमस्कार मंत्र को एक लाख जपता है और पूजता है, वह तीर्थंकर (जिनेश्वर ) के नाम गोत्र को बांधता है अर्थात् तीर्थंकर होता है, इसमें शक ( सन्देह ) नहीं ।। ५७ ।।
तथा चऔर भीअट्ठव य अट्ठसया, अट्ठसहस्स च अट्ठकोडीओ। जो गुणइ भत्तिजुत्तो, सो पावइ सासयं ठाणं ॥ ५८ ॥
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