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श्री कामघट कथानकम
तब कपट की पण्डिताई से युक्त होकर वेश्याने कहा- कि तुम मेरे भाई की स्त्री हो, यहां क्यों ठहरी हो ? मंत्री तो मेरे घर पर पहुंच गया है, इसी लिए उसने तुम्हें बुलाने के लिए मुझे भेजा है, अत: तुम मेरे साथ मेरे घर को चलो । तब वह सीधा-सादा स्वभाव वाली उस की मीठी बातों के प्रपंच से ठगी हुई उसी समय उसके घर चली गई ।
यतः
क्योंकि
तथा च
हि
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मायया
मत्स्यः
समुद्र-मध्यस्थो
सीधा-सादा आदमी माया के द्वारा बड़े पापों से ठगा जाता है, जैसे मछली मल्लाहों के द्वारा ( पकड़ कर ) मारी जाती है ।। ६५ ।।
महापापै— वच्यते
यतः
क्योंकि -
सरलो aavatra
और भी
द्यतकारे
वेश्यां च
नटे धूर्ते, विशेषतः । मायां कृत्वा निजावास, स्थिताऽस्ति खलु शाश्वती ॥ ६६ ॥
नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं, सरलास्तत्र छिद्यन्ते,
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जुआरी में, नट में, ठग में, और विशेष करके वेश्या में यह पृथिवी माया करके अपना वास में रही हुई है, नहीं तो कब कि कब गायब हो गई होती ॥ ६६ ॥
अतः सर्वत्र पुरुषैः सरलस्वभावो नैव रक्षणीयः, किन्तु यथाऽवसरं यथास्थानमेव सर्वत्र स्वबुद्धिचातुर्यं करणीयम् ।
इसलिए, पुरुषों को सभी जगह सरल स्वभाव होकर नहीं रहना चाहिए, किन्तु देश-काल के अनुसार ही सब जगह खूब होशियारी से काम करना चाहिए ।
जनः ।
यथा ।। ६५ ।।
समुद्र के बीच में रही हुई
गवा
पश्य कुब्जास्तिष्ठन्ति
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वनस्थलीम् । पादपाः ॥ ६७ ॥