________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री कामघट कथानकम
कुल - जाति - विहीनानां, पितृ - मातृ - वियोगिनाम् । गेहिनी - पुत्र - युक्तानां, नूनं देया न कन्यका ॥ ६१ ॥
नीच कुल और नीच जाति वालों को, बिना मां-बाप वालों को, स्त्री और पुत्रों से युक्त व्यक्ति को निश्चय करके कन्या नहीं देनी चाहिए ।। ६१ ।।
अपरं चऔर भीसदैवोत्पन्न - भोक्तृणा - मालस्य - वश - वर्तिनाम् । बहु - वैराग्य - युक्तानां, नूनं देया न कन्यका ॥ १२ ॥ सदा ही उत्पन्न-भोगी को, आलसी को, अधिक विरागी को हरगिज कन्या नहीं देनी चाहिए ॥६२ ।।
अतः सुकुलजात्युत्पन्नसपितृभ्यामुभयलोकशुभेच्छयैतान् गुणान् विलोक्यैव सुता प्रदेया । इसलिए, सुन्दर कुल और जाति से उन्पन्न अच्छे मां-बाप से युक्त दोनों लोक की मंगल ( कल्याण ) कामना से इन (निम्न लिखित ) गुणों को देखकर ही लड़की देनी चाहिए
यथाजैसे :कुलं च शीलं च सनाथता च, विद्या च वित्तं च वपुर्वयश्च ।
वरे गुणाः सप्त विलोकनीया-स्ततःपरं भाग्यवशा हि कन्या ॥ ६३ ॥ __ कुल और आचरण, सनाथता ( माता-पिता-भाई आदि से युक्त), विद्या, धन, शरीर और वय ( उमर ) ये सातों गुण बर में देखना चाहिए-इसके बाद अपना भाग्य से ही लड़की सुख चाली या दुःख वाली होती है ।। ६३ ॥
इति तद्वचो निशम्य कन्यकयोक्तम्-अहं स्वयमेव स्वयोग्यं वरं दर्शयामि, राक्षस्योक्तम्तो धुनेव त्वां तस्मै ददामि। ततः पूर्वसंकेततस्तदैव मन्त्री प्रकटीबभूव, राक्षस्याऽपि तया सह गांधर्व विवाहेन स परिणायितः। करमोचनावसरे च खट्वादिवस्तुचतुष्टयं तेन याचितं, तयाऽपि च तत्सर्व तस्मै समर्पितम् । अथैकदा राक्षसी क्रीडाद्यर्थमन्यत्र जगाम, तदा तया कन्यया मंत्र्यूचे--
For Private And Personal Use Only