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श्री कामघट कथानकाम
असंभवं हेममृगस्य जन्म, तथाऽपि रामो ललुभे मृगाय । प्रायः समापन्न-विपत्ति-काले, धियोऽपि पुंसां मलिना भवन्ति ॥ ४४ ॥
सोने का हरिण का पैदा होना असम्भव है, फिर भी उस असंभवित सुवर्ण-मृग के लिए रामचन्द्रजी ललचा गए। प्रायः संकटकाल के आने पर मनुष्यों की बुद्धि भी मन्द (निकम्मी ) हो जाती है ॥ ४४ ॥
तथा च
और इसीतरहन स प्रकारः कोऽप्यस्ति, येनेयं भवितव्यता । छायेव निज-देहस्य, लंध्यते जातु जन्तुभिः ॥ ४५ ॥
ऐसा कोई भी उपाय नहीं है, जिसके द्वारा यह भवितव्यता (होनहार ) टलाई जा सके, अपनी देह की छाया की तरह यह भक्तिव्यता प्राणियों द्वारा कभी भी नहीं लांघी जा सकती ॥ ४५ ॥
अपि चऔर भीपातालमाविशतु यातु सुरेन्द्र-लोकमारोहतु क्षितिधराधिपतिं सुमेरुम् । मंत्रौषधैः प्रहरणैश्च करोतु रक्षा यद्भावि तद्भवति नात्र विचार-हेतुः ॥ ४६ ॥
प्राणी पाताल में जाए या स्वर्ग में जाए अथवा सुमेरु पर्वत पर चढ़ जाए, मंत्रों-औषधियों और हथियारों द्वारा अपनी रक्षा ( भले ही ) करे, मगर जो होनहार है वह होकर ही रहता है, इसमें तर्कवितर्क की गुंजाइश नहीं।
अथ समुद्रपतिते तस्मिन्नमात्ये चिन्ताकरणं तव नोचितं, चिन्तया किमपि हस्ते नैव समायाति तत्करणेन च कर्मबन्धोऽपि भवति ।
अब, मंत्री के समुद्र में गिरजाने पर उसके विषय में तुम्हारा चिन्ता करना ठीक नहीं, क्योंकि शोक करने से कुछ भी हाथ में नहीं आता और शोक करने से कर्म का बन्धन भी तो होता है।
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