Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम् अनाज्यं भोज्यमप्राज्य, विप्रयोगः प्रियैः सह । अप्रियैः संप्रयोगश्च, सर्व पापविजेंभितम् ॥ ११ ॥ थोड़ा भोजन और वह भी विना घी का (रूखा-सूखा ) प्रियजनों के साथ वियोग और अप्रिय (दुष्ट ) जनों के साथ संप्रयोग ( भेंट-मुलाकात, आहार-व्यवहार ) ये सब पाप के फल हैं ॥११॥ कुग्रामवासः कुनरेन्द्रसेवा, कुभोजनं क्रोधमुखी च भार्या । कन्याबहुत्वञ्च दरिद्रभाव, एतान्यधर्मस्य फलानि लोके ॥ १२ ॥ खराब ग्राम में वास, दुष्ट राजा की सेवा, खराब खाना, क्रोध मुंह वाली स्त्री, बहुत कन्या, और दरिद्रता संसार में ये सब पाप के फल हैं ।। १२ ।। खट्वायां मत्कुणा भूमौ, गृहं च बालकावलिः । अन्धनं यवा भक्ष्याः , पापस्येदं फलं मतम् ॥ १३॥ चार पाई (खाट ) में खटमल का होना, भूमि ही घर और बच्चों की अधिकता, आंक की लकड़ी और खाने के लिए जौ, यह पाप का फल है ।। १३ ।। अपिचऔर भी :यद्व रूप्यमनाथता विकलता नीचे कुले जन्मता, दारिद्रयं स्वजनैश्च यः परिभवो मौख्यं परप्रेष्यता । तृष्णालौल्यमनिर्वृतिःकुशयनं कुस्त्री कुभुक्तं रुजा, सर्व पापमहीरुहस्य तदिदं व्यक्तं फलं दृश्यते ॥ १४ ॥ कुरूप होना, अनाथ होना, व्याकुल होना, नीच कुल में जन्म होना, दरिद्रता और स्वजनों के साथ पराभव, मूर्खता, दूसरे को गुलामी, तृष्णा की लोलुपता, बेचैनी खराब शयन, खराब स्त्री, खराब भोजन और रोग ये सब के सब पापरूपी वृक्ष के साफ साफ फल देखे जाते हैं ।। १४ ।। - ..इत्थमेव पापसूचकं भाषायामपि काव्येनोक्तम् इसी तरह पाप का फल हिन्दी भाषा में भी कविता के द्वारा कहा हुआ है For Private And Personal Use Only

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