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श्री कामघट कथानकम्
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स्त्री के साथ व्याभिचार किया जाता है, उसका परिणाम स्वरूप उन्हें एकीस बार सातवां नरक का दुःख भोगना ही पड़ता है।
यदुक्तंकहा भी हैतस्माद्धर्मार्थिभिस्त्याज्यं,
परदारोपसेवनम् । नयन्ति परदारास्तु,
नरकानेकांवशांतम् ॥ २३ ॥
इस लिए धर्म की इच्छा वालों को पराई स्त्री के साथ मैथुन (व्यभिचार ) छोड़ देना चाहिए, क्योंकि, पराई स्त्री के साथ मैथुन एक्कीस बार कठोर नरक में ले जाता है ।। २३ ।।
तथा च युधिष्ठिरं प्रति भीष्मः--- और इसीतरह महाभारत में धर्मराज युधिष्ठिर के प्रति पितामह भीष्म का उपदेश है :
नहीदृशमनायुष्यं लोके किञ्चन विद्यते ।
यथा हि पुरुषव्याघ्र ! परदारोपसेवनम् ॥ हे नर शार्दूल ! दूसरे की स्त्री के साथ मैथुन ( व्यभिचार ) जिस तरह शीघ्र आयुष्य को नष्ट कर डालता है, उस तरह आयु को नष्ट करने वाला इस संसार में कोई भी कुकर्म नहीं है ।।
अपि चऔर भीभक्खणे देव-दव्वस्स, परथी-गमणेण य । सत्तमं नरयं इंति, सत्तवाराओ गोयमा ! ॥ २४ ॥ (संस्कृत छाया)
भक्षणे देवद्रव्यस्य परस्त्री गमनेन च ।
सप्तमं नरकं यान्ति सप्तवारं हि गौतम ! ॥ २४ ॥ भगवान महावीर कहते हैं कि हे गौतम, देवद्रव्य के हड़पने में और पर स्त्री के साथ मैथुन करने से सातवां नरक में सात बार जाना पड़ता है ।। २४ ।।
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