________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री कामघट कथानकम
अथ नृत्यपूर्वकं हावभावादिविषयासक्तं युवकगणं कुर्वती तां गणिकां प्रति सद्गुणसमुद्रो मन्त्री जगाद-अये विरूपभाषाभाषिणि ! कथमेवं प्रलपसि ? त्वं केनाहूतासि ? उन्मत्तेव वारम्वारं किमर्थमसमंजसं भाषसे ? हे दुष्टालापिनि ! त्वमत्र मा किमपि वद, नाहं त्वया साकं समागमिप्यामि, नैव च कदापि त्वां सेविष्ये ।
फिर नाच करती हुई हाव-भाव आदि से युवक जनों को विषय में आसक्त करती हुई उस वेश्या के प्रति अच्छे गुणों का समुद्र मंत्री बोला -अरी, खराब बात बोलने वाली, तुम इसतरह क्यों बकती हो ? तुम्हें किसने बुलाया है ? तुम पगली की तरह बार बार क्यों अनुचित बोल रही हो ? हे विषैले आखों वाली, हे दुष्ट-आलाप करने वाली, तुम यहां कुछ भी मत बोलो, मैं तेरे साथ नहीं आसकूँगा, न कुछ भी कहूंगा और कभी भी तुम्हें नहीं सेदूंगा।
यतःक्योंकिकश्चुम्बति कुल-पुरुषः, वेश्याधर-पल्लवं मनोज्ञमपि । चार-भट-चौर-चेटक - नट-विट-निष्ठीवन-शरावम् ॥ २०॥
कौन कुलीन पुरुष सुन्दर भी वेश्या के अधर-पल्लव ( होठ ) को चुम्बन करता है ? अर्यात् कोई नहीं, कारण कि वेश्या का होठ-नौकर-चाकर, भांट-भिखार, चोर-डाकू नट और जारों के थूक का प्याला हे ।।२०।।
या विचित्र-विट-कोटि-निघृष्टा, मद्य-मांस-निरतातिनिकृष्टा । कोमला वचसि चेतसि दुष्टा, तां भजन्ति गणिकां न विशिष्टाः ॥ २१ ॥
जो रंग-बिरंग के करोड़ों जारों द्वारा बार बार भोगी गई और शराब तथा मांस खाने वाली अत्यन्त अपवित्र है तथा वाणी में कोमलता और मन में क्रूरता से भरी है, ऐसी उस वेश्या को विशिष्ट ( अच्छे, भले ) व्यक्ति कभी नहीं सेवते ।। २१ ॥
अपि चऔर भीजात्यन्धाय च दुर्मुखाय च जरा-जीर्णाखिलांगाय च, ग्रामीणाय च दुष्कुलाय च गलत्कुष्ठाभिभूताय च ।
m
For Private And Personal Use Only