Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कामघट कथानकम् अपि च और भी धर्मो जयति नाधर्मो, क्षमा जयति न क्रोधः, www.kobatirth.org जिनो जयति सत्यं जयति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म की विजय होती है --अधर्म की नहीं, जिनेश्वर जय पाते हैं-असुर नहीं, क्षमा की जय होती है— क्रोध की नहीं और सत्य जीतता है-झूठ नहीं ॥ १६ ॥ उक्तं चकहा भी है नासुरः । नानृतम् ॥ १६ ॥ इति धर्मादेव भव्यं भवति न तु पापेन, तथापि राजा न मन्यते स्म प्रत्युत कथयति स्म —हे मन्त्रिन् ! मत्सकाशाद्धर्मतत्त्वं श्रूयताम् – परलोकगामी शरीरात्पृथक्कश्चन जीवो नास्ति यः परत्र पुण्या - पुण्यजन्यं सुखदुःखमनुभविष्यति । शरीरमेवात्मा, पृथिव्यादिचतुष्टयमेव महाभूतं, राजा परमेश्वरः, यावानिन्द्रियगोचरः स एव लोको नापरः, धनार्जनोपायो धर्मः, तद्विरुद्धोऽधर्मः, मृत्युरेव मुक्तिः, अस्मिन् लोके सुखातिशयानुभवः स्वर्गः, दुःखातिशयानुभवः नरकः, प्रत्यक्षमेव प्रमाणं, सुरांगेभ्यो यथा मदशक्तिरुत्पद्यते, तथैव चतुभ्य भूतेव्यश्चिच्छक्तिर्जायते, तस्माद्य े जना दृष्टं विहायादृष्टं कल्पयन्ति ते मन्दमतिमन्तो मूढा एव ज्ञातव्याः । इस तरह धर्म से हो अच्छा होता है, न कि पाप से। फिर भी राजा नहीं मानता था और कहता था - हे मन्त्री, मुझसे धर्म का तत्व सुनो, दूसरे लोक में जाने वाला शरीर से अलग कोई जीव ( पदार्थ ) नहीं है, जो परलोक में पुण्य-पाप से उत्पन्न सुख-दुःखको अनुभव करेगा - भोगेगा । शरीर ही आत्मा है, पृथिवी आदि चार ( पृथिवी, जल, अग्नि और वायु ) ही महाभूत है । राजा ही परमात्मा है, जो आंखों के सामने दीखता है वही ( यही ) लोक है - दूसरा नहीं है । किसी भी ढंग से धन कमाने का उपाय धर्म है, धन नहीं कमाने का उपाय (प्रयत्न) अधर्म है | मौत ही मुक्ति है, इसी लोक अत्यन्त सुख का भोग ही स्वर्ग है और अत्यन्त दुःख का भोग नरक है, प्रत्यक्ष ही (एक) प्रमाण है और जैसे शराब में से मदशक्ति (नशा) उत्पन्न होती है, उसी तरह चारों महाभूतों से चेतनशक्ति उत्पन्न होती है, इसलिए जो व्यक्ति प्रत्यक्ष को छोड़ कर अप्रत्यक्ष की कल्पना करते हैं वे मन्द बुद्धि वाले मूर्ख ही हैं ऐसा जानना चाहिए । में For Private And Personal Use Only

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