Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४० www.kobatirth.org श्री कामघट कथानकम इसी बीच में मंत्रीने आकर राजा को विनीत होकर सूचना दी कि - हे स्वामी, शीघ्र पधारें, रसोई ठंढी हो रही है। यह सुनकर राजाने कहा - हे मंत्री, मेरे साथ भी तूने मसकरी करना क्या शुरू कर दिया ? क्योंकि तेरे मकान में थोड़ी भी भोजन सामग्री नहीं है । तब मंत्रीने कहा- स्वामिन्, एक बार अपने चरणों को ले जाकर (पधार कर ) जरा देख लें, सारी सामग्री तैयार है। तब राजा अपने नौकर-चाकर दोस्त - महीम के साथ चला और मार्ग में क्रोध से लाल शुर्ख होकर विचारने लगा - यदि यह (मंत्री) हमको आज भोजन नहीं देगा तो अनेक तरह के छल कपट से इस बात को ( शिकायत को ) छिपा दूंगा यह विचार उसने कोप के अधीन होकर किया । तदुक्तं च और वह कहा भी है सन्तापं तनुते भिनति विनयं सौहार्दमुत्सादयजनयत्यवद्यवचनं ब्रूते विधत्ते युगं कलिम् । कोर्त्तिं कृन्तति दुर्गतिं वितरति व्याहन्ति पुण्योदयं, दत्ते यः कुगतिं स हातुमुचितो रोषः सदोषः सताम् ॥ ७६ ॥ ( संस्कृत छाया ) - क्रोध पीड़ा को देता है, विनय को नष्ट करता है, मित्रता को भेदन करता है, उद्वेग को उत्पन्न करता है, बुरा बचन बोलता है, झगड़ा करता है, कीर्त्ति को काट डालता है, दुर्गति को देता है, पुण्य को मार भगाता है, और खराब गति ( नरकगति) को देता है, इसलिए क्रोध बहुत बुरा है, बुद्धिमानों को इसे छोड़ देना चाहिए ।। ७६ ।। कोह पट्टिओ देहघरि, आप तपे पर संतपे, तिपिण विकार धणणी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाणि क्रोधः प्रतिष्ठितः देह गृहे त्रीन् विकारान् करोति । स्वयं तपति परं संतापयति धनस्य हानिं करोति ॥ For Private And Personal Use Only es | करेइ ॥ ८० ॥ देह रूपी घर में क्रोध के रहने से तीन विकार होते हैं, क्रोध स्वयं तपता है और दूसरों को पीड़ित करता है तथा धन का नुकशान करता है ॥ ८० ॥

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