Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम अपि चऔर भीजानीयात्प्रेषणे भृत्यान्, बांधवान् व्यसनागमे । मित्रमापदि काले च, भार्या च विभव-क्षये ॥ १२ ॥ किसी कार्य के लिए कहीं भेजने में नौकरों को, कष्ट (दैहिक आर्थिक ] में बांधवों को, आपत्ति में मित्रों को और धन के न रहने पर स्त्री को ( अच्छा बुरा ) जानना चाहिए ।। ६२ ।।। एवं राज्ञा भृत्याः शिक्षिताः। अथ द्वितीयदिवसे तस्मिन् पुरेऽपि धर्ममाहात्म्यदर्शनार्थ मन्त्रिणा दण्डं प्रत्युक्तम्-भो दंड ! कामघट मे समानयेति, तदैव स दंडस्तत्र गत्वा सर्वान हयगजसुभटान् कुट्टयित्वा रुधिरवमनांश्च विधाय मूर्छाभिभूतान् कृत्वा राज्ञः पश्यत एव तं कामघटं गृहीत्वा मन्त्रिगृहे समागतः। राजा तं घटं गतं दृष्ट्वा विषण्णचेता मन्त्रिगृहे गत्वोवाच भो मन्त्रिन ! पापिनो गहे सद्वस्तु न तिष्ठतीति तवोक्तं सर्व सत्यं जातम् । अतः सांप्रतं ममालयेऽयमनर्थः समुत्पन्नः, ततस्त्वं प्रसादं कृत्वा मत्सेन्यं सज्जीकुरु । एवं राज्ञो बताग्रहेण मन्त्री तत्र गत्वा तेषां सुभटानामुपरि प्रभावान्वितं चामर-युगलं बीजयित्वा सर्वानपि सजीकृतवान् । ततो मन्त्रिणोक्तं भो राजन् ! मद्धर्मप्रभावोऽयं दृष्टः १ ततो राज्ञापि मन्त्रिप्रसङ्गाद् धर्मोऽङ्गीकृतः प्रोक्तं च सर्वमपि भव्यं धर्मादेव भवति । इसतरह सेवकों को राजाने समझा दिया। अब दूसरे दिन उस नगर में मंत्रीने धर्म के माहात्म्य को दिखलाने के लिए दण्ड को बोला-हे दण्ड, मेरा कामघट तू ला दो, उसी समय दण्डने वहां जाकर राजा के हाथी घोड़े और सुभटों को इतनी मार मारी कि उन सबों के मुंह से खून की उलटी होने लगी और सब मूच्छित (बेहोश ) हो गए. ऐसा करके राजा को देखते ही उस कामघट को लेकर मंत्री के घर पर चला आया। राजा उस घड़े को गायब होते देखकर अत्यन्त दुःखी चित्त होकर मंत्री के घर पर जाकर बोला-हे मंत्री, पापी के घर में अच्छी वस्तु नहीं टिकती है, यह तुम्हारा कहा हुआ सब सत्य निकला। इसी से अभी मेरे घर में यह अनर्थ ( आफ़त) हुआ है, इस लिए तुम कृपा करके. (प्रसन्न होकर ) मेरी सेना को अच्छा कर दो, इसतरह राजा के अधिक आग्रह से मंत्री वहां जाकर उन मूर्छित सुभटों के ऊपर प्रभावों से युक्त दोनों चामरों को डुला कर सब को अच्छा कर दिया। तब मंत्रीने कहा-हे राजन् ! आपने मेरे धर्म का प्रभाव देखा। राजाने कहा-हां, देख लिया। उसके बाद राजाने भी मंत्री के प्रसंग से धर्म को स्वीकार किया और बोला कि सभी अच्छाई धर्म से ही होती है । For Private And Personal Use Only

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