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श्री कामघट कथानकम्
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कर डालते थे । जैसे शराब पीने वाला कुल की लाज और मर्यादा ( इज्जत ) आदि को नहीं गिन कर अपने देह की सूध भी ( भूल ) जाता है उती तरह वह सेठ भी विषय रूपी मद से अंधा हो गया ।
यतः
क्योंकि
प्रभुत्वमविवेकिता ।
यौवनं एकैकमप्यनर्थाय
किं
पुनस्तच्चतुष्टयम् ॥ १४ ॥
जबानी, धन-दौलत, प्रभुता और बेवकूफी, ये एक एक भी दुनियां में बरबाद करने वाले हैं, फिर जहां ये चारों इकट्ठे हों वहां क्या कहना ? ॥ १४ ॥
पूर्व महर्षिभिर्विद्वद्वर्यैरपि स्त्रीदेहमुद्दिश्य धर्मशास्त्रे नीतिशास्त्रेऽपि च सर्वेषां बन्धनरूपं भणितमस्ति ।
जैसे
:
धन-सम्पत्तिः,
प्राचीन महर्षियों और विद्वानों ने भी स्त्री देह ( कामिनी ) को लक्ष्य में लाकर धर्मशास्त्र और नीति शास्त्र में भी सब के लिए बन्धन रूप कहा है
यथा-
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संसारे हयविहिणा,
वज्यंति जत्थ मुद्धा,
( संस्कृत छाया )
महिलारूवेण
जाणमाणा
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मंडियं
अजाणमाणा
पासं ।
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वि ॥ १५ ॥
संसारे हस- विधिना महिला-रूपेण मण्डितः पाशः ।
asयंते यत्र मुग्धा ज्ञायमाना अज्ञायमाना अपि ।। १५ ।।
बदतमीज ब्रह्माने या बदनसीबीने इस संसार में कामिनी रूप पाश (जाल) को फैला दिया जिस जाल में मोह को प्राप्त हुए व्यक्ति जानते हुए और नहीं जानते हुए भी बँध ( फँस ) जाते हैं ।। १५ ।। नोट- ध्यान रहे कि दूरदर्शी ऋषियों, मुनियों, ज्ञानियों और पूर्राचार्याने मदमाती, मर्यादाहीना कामिनी को ही महिला रूप पाश कहा है, नकि धर्मपरायणा पतिव्रता सच्चरित्रा सती - शिरोमणि सीता, सावित्री आदि आदर्श नारी को, बल्कि इन भारतीय आदर्श-ललनाओं के समान पतिव्रता सच्चरित्राओं को तो उन्होंने मानव के ऐहिक पारलौकिक सुख प्राप्ति में परिपूर्ण सहायिका मानी है। विशेष जिज्ञासा की संतृप्ति के लिए, हमारी "सोता का पति-प्रेम” नामक पुस्तक देखें।