________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
दीपैर्ज्ञानमनावृतं सन्त्येतानि किमद्भुतं
www.kobatirth.org
निरुपमा
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भोगद्धिरत्नादिभिः,
श्री कामघट कथानकम्
शिवपदप्राप्तिस्ततो
देहिनाम् ॥ ३३ ॥
भगवान् जिनेश्वर को वस्त्रों से पूजा करने से वस्त्र की संपत्ति बढ़ती है, अलंकार से पूजा करने से अनेक तरह के अलङ्कार प्राप्त होते हैं, फूलों से पूजा करने से बड़ा पद प्राप्त होता है, गंधों (सुगंधों ) से पूजा करने से अच्छी गंध की वृद्धि होती है, दीप से पूजा करने से स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होता है, रत्न आदि से पूजा करने से अत्यन्त भोग सुख की वृद्धि होती है. इतने हुए तो आश्चर्य क्या ? से संसारिक सभी सुख के मिलने के बाद अन्त में मुक्ति भी मिलती है ।। ३३ ।।
भगवान् की पूजा करने
न यान्ति दास्यं न दरिद्रभावं न प्रेष्यतां नैव च हीनयोनिम् । न चापि वैकल्यमथेन्द्रियाणां ये कारयन्त्यत्र जिनेन्द्रपूजाम् ॥ ३४ ॥
त्वं दुःखदावाग्नि- तप्तानामिह मेक- दीपरत्वमेव
जो प्राणी भगवान् जिनेश्वर की पूजा करवाते हैं, उन्हें नौकरी नहीं करनी पड़ती, वे दरिद्र नहीं होते, सेवक नहीं होते और न नीच योनि में पैदा होते, और उन्हें इन्द्रियों की चिकलता भी नहीं होती ॥ ३४ ॥
देव ! मोहान्धकार-मूढाना
हे भगवान्, जिनेश्वर, दुःख रूपी वन की अग्नि से जले हुए लोगों के लिए तुम सजल मेघ के समान हो और मोह रूपी अन्धकारों से विमूढ़ लोगों के लिए तुम ही एक (ज्ञान रूपी ) दीप हो ।। ३५ ।।
वारिदः । हि ॥ ३५ ॥
आयुष्यं यदि सागरोपममितं
पाण्डित्यं च समस्तवस्तुविषयं
जिह्वा कोटिमिता च पाटवयुता स्यान्मे धरित्रीतले, नो शक्नोमि तथापि
वर्णितुमलं
व्याधिव्यथावर्जितं, प्रावीण्यलव्धास्पदम् ।
For Private And Personal Use Only
तीर्थेश पूजाफलम् ॥ ३६ ॥
यदि मेरी आयु शारीरिक और मानसिक रोगों से रहित एक सागरोपम वर्ष प्रमाण हो और सपा के ज्ञान की निपुणता को प्राप्त करने वाली पण्डिताई मुझ में हो जाय, और इस भूतल पर वाकू