Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम् २६ जिसने सिद्धान्त की नीति से--भगवान् के कहे हुए अनुसार पवित्र मन से संघ की पूजा की उसका जन्म सफल हो गया, अपने कुल का शुभ आचरण प्रगट कर दिया, पुण्य और निर्मल यश प्राप्त किया और अपने निर्मल गुण प्रसिद्ध कर दिया, दुःखों को जलांजलि (खत्म ) कर दी और मोक्ष के (बंद) द्वार को उघाड़ दिया ।। ६२॥ ६३ ॥ ६४॥ तथा च और इसी तरह - कल्पद्रुमस्तस्य श्चिन्तामणिस्तस्य त्रैलोक्यलक्ष्मीरपि गृहांगणं गृहेऽवतीर्ण लुलोठ । वृणीते, यस्य पुनाति संघः ॥ ६५ ॥ जिसके घर के अंगन को संघ पवित्र कर देता है, उसके घर में कल्प वृक्ष उत्पन्न होता है और चिन्तामणि उसके घर मे लोटती है एवं तीनों लोक की लक्ष्मी (संपत्ति ) उसको वरण (पसन्द) कर लेती कथंभूतः स श्रीसंघो यथावह श्रीसंघ कैसा है ? सो वर्णन करते हैं :रत्नानामिव रोहणः क्षितिधरः खं तारकाणामिव, वर्गः कल्पमहीरुहामिव सरः पंकेरुहाणामिव । पाथोधिः पयसां शशीव महसां स्थानं गुणानामसा-, वित्यालोच्य विरच्यतां भगवतः संघरय पूजाविधिः ॥ ६६ ॥ रत्नों के लिए रोहण पर्वत के समान, तारों के लिए आकाश के समान, कल्प वृक्षों लिए स्वर्ग के समान, कमलों के लिए सरोवर के समान, जलों के लिए समुद्र के समान, शीतल ज्योति के लिए चन्द्रमा के समान और गुणों का स्थान श्रीसंघ की सेवा-भक्ति है, इसलिए उपर्युक्त बातों को विचार कर भगवान के श्रीसंघ का पूजा-विधान सब को करना चाहिए ।। ६६ ।। For Private And Personal Use Only

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