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श्री कामघट कथानकम
विधाय तेन संघेन सह क्षेमकुशलादिवार्तालापो विहितः। ततस्तेन मन्त्रिणा शास्त्रविचारदृष्टया महालाभं बुध्या स्वपार्श्वस्थं कामघटानुभावं विदित्वा च शुद्धभावनयातिबहुमानेन सहर्षभरेण स्वामिवात्सल्याय संघो निमन्त्रितः। कुतः शास्त्र संघभक्तिफलमेवमुक्तम् –
इसतरह श्रीसंघ व तीर्थ की स्तुति करके और शुद्ध भावना करके बाद में वहां से लौटता हुआ रास्ता में एक गांव के पास ठहर गया। इसी समय उस मंत्रीने उसी मार्ग में जाता हआ उस संघ को देखा
और देखकर अत्यन्त खुश होकर उसने 'जयजिनेद्र' इस भगवान् के नाम को कहता हुआ नमस्कार करके उसी संघ के साथ कुशल-मंगल की बातचीत की। फिर उस मंत्रीने शास्त्र के विचारों की दृष्टि से बहुत लाभ समझ कर अपने पास में रहे हए कामघट के माहात्म्य को जानकर शुद्ध भावना द्वारा बहत मान पूर्वक हर्षित होकर स्वामी वात्सल्य (सामी वच्छल) के लिए संघ को निमन्त्रण (न्योता) दिया। क्योंकि शास्त्र में संघ-भक्ति का फल ऐसा कहा गया है :
कदा किल भविष्यन्ति, मदगृहांगण - भूमयः । श्रीसंघ-चरणाम्भोज - रजोराजि-पवित्रिताः ॥ ६२ ॥ रुचिर-कनक-धाराः प्रांगणे तस्य पेतुः, प्रवर-मणि-निधानं तद्गृहान्तः प्रविष्टम् । अमर-तरु-लतानामुद्गमास्तस्य
गेहे, भवनमिह सहर्ष यस्य पस्पर्श संघः ॥ ६३ ॥ प्राप्तं जन्मफलं जने निजकुलाचारः प्रकाशीकृतः, पुण्यं स्वीकृतमर्जितं शुचियशः शुभ्रा गुणाः ख्यापिताः ।। दत्ता दुःखजलाञ्जलिः शिवपुरद्वारं समुद्घाटितं, यैः सिद्धान्त-नयेन शुद्ध-मनसा श्रीसंघ-पूजा कृता ॥ ६४ ॥ मेरे घर के आंगन की भूमि श्रीसंघ के चरण-कमल के रज की ढेर से पवित्र कब होगी ?
जिसके मकान को श्रीसंघ हर्षित होकर स्पर्श (प्रवेश ) करता है, उसके आंगन में सोने की बर्षा होती है और घर के भीतर अच्छे मणियों की ढेर लग जाती है एवं उसके घर में कल्प वृक्ष उत्पन्न हो जाता है।
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