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अमोघा
अमोघं
श्री कामघट कथानकम्
पाप स्थान के आचरण करने वाले को, भाई बहन और मुनि के मारने वाले को, सात व्यसनों के सेवने वाले को, मिथ्यावादी को, बालक-स्त्री-गो-ब्राह्मण के मारने वाले को, समान गोत्र के स्त्री के साथ रति करने वाले को, गुरु-देव- ज्ञान के द्रव्य को खाने वाले को, पूज्य गुरु आदि के दुःख देने वाले को जो पाप लगता है, तथा ऐसे ही संसार में जितने बड़े पाप हैं वे सब पाप मुझे लगे जब कि आपके पास लौटकर नहीं आजाऊं । इसतरह मंत्री की बात को सुनकर विश्वास को प्राप्त हुआ उसने भी उसमंत्री के के पुण्य प्रभाव से उसे जाने के लिए आज्ञा देदी । अनन्तर राक्षस की आज्ञा पाकर हर्षित होकर मंत्री आगे चला । अब मार्ग में जाता हुआ उसने किसी शहर के नजदीक ही वगीची में भगवान् ऋषभदेव स्वामी का मन्दिर देखा। वहां जाकर अच्छीतरह भक्ति भावना पूर्वक भगवान् जिनेश्वर की पूजा कर अत्यन्त खुश होकर अपनी हार्दिक सद्भावना के द्वारा भगवान वीतराग देव की स्तुति करने लगा
वासरे
बिद्यु-दमोघं
निशि
गर्जितम् । देवदर्शनम् ॥ ३१ ॥
च,
रात्रि में मेघ की गर्जना, साधुओं की वाणी और देवता का दर्शन
साधुवाक्यं
दिन में बिजली का चमकना, ये कभी निष्फल नहीं होते ॥ ३१ ॥
अपि च
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और भी
धन्यानां ते नरा धन्या मनोहारि,
निर्विकार
मोघं
वस्त्रैर्वस्त्र विभूतयः पुष्पैः पूज्यपदं
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जिनेन्द्रमुखाम्बुजम् । दिवसोदये ॥ ३२ ॥
पश्यन्ति
वे मनुष्य धन्य लोगों में भी धन्य हैं- धन्यवाद के पात्र हैं जो प्रातः काल में निर्मल और मनोहर जिनेश्वर के मुख- कमल को देखते हैं ।। ३२ ।।
पुनर्ये नरा शास्त्रोक्तद्रव्यभावपूजाविधिना जिनेन्द्रपूजां कुर्वन्ति तेषामीदृशं फलं भवति ।
तथाहि
और जो लोग शास्त्रोक्त रीति से द्रव्य-भाव- पूजा की विधि से जिनेश्वर की पूजा करते हैं, उन्हें ऐसा फल होता है, जैसे
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शुचितरालंकारतोऽलंकृतिः, सुगन्धितनुता गंधेजिने
पूजिते ।
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