Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ www.kobatirth.org ध्यायामि माद्य नो जिनेश्वरमहर्निशमेव सेवे ॥ ४० ॥ मैं चिन्तामणि को नहीं चाहता, कल्पवृक्ष की चाहना भी नहीं है और न कामधेनु को ही देखना चाहता हूं न धन-दौलत का ही ध्यान है, किन्तु एक यह कि – अमूल्य गुणों से युक्त भगवान आदि जिनेश्वर को ही दिन-रात सेवा करूं ॥ ४० ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " श्री कामघट कथानकम् निधिमनर्घ्यगुणातिरेक इत्यादिस्तुत्या प्रमुदितः प्रतिमारक्षः कपर्दियक्षः प्रत्यक्षो बभूव । तेन जिनभक्तिस्तुतिसन्तुष्टेन बहिर्गत्वा मंत्रिणे कामघटः समर्पितः । तदा मन्त्रिणोक्तम् – भो यक्षेन्द्र ! अहमेनं घटं कथं गृह्णामि कुत्र वा स्थापयामि ? अनेन समीपस्थेन पुरुषस्य लज्जा स्यात् । ततो देवेनोतमनुत्पाटित एवादृष्टस्सन्नयं घटस्तव पृष्ठे समागमिष्यति, पुनस्तेऽयं मनोवाञ्छितार्थं पूरयिष्यति । एतन्मन्त्रणापि स्वीकृतं, ततः स मन्त्री कृतकृत्यस्सन् कामकुम्भं लात्वा स्वनगरं प्रति चलितो मार्गे विचारयति स्म – ममेदं धर्मस्य महात्म्यं धर्मेण विना नरोऽपि न शोभते, यथेष्टं च कार्य - किमपि न स्यात् । यतः - इत्यादि स्तुति से प्रसन्न होकर प्रमिता का रक्षक महादेव का यक्ष प्रत्यक्ष ( सामने ) हुआ । और उस यक्षने भगवान् की भक्ति भरी स्तुति से खुश होकर बाहर जाकर मंत्री को 'कामघट' दिया । तब मंत्री ने कहा- हे यक्षराज, मैं इस कामघट को किसतरह ग्रहण करूं या कहां स्थापन करूं ? क्योंकि इसके पास में रहने से पुरुष को लज्जा होगी । तब यक्षने बोला कि - बिना उठाए हुए ही यह अदृश्य होकर तुम्हारे पीछे जायगा और यह तुम्हारा सारा मनोरथ पूरा कर देगा। यह मंत्रीने भी स्वीकार कर लिया । अनन्तर वह मंत्री कृतकृत्य ( कार्य में सफल ) होकर कामघट को लेकर अपने नगर की ओर चला और रास्ता में विचारने लगा- - मुझे यह धर्म का ही माहात्म्य है, धर्म के बिना मनुष्य शोभा नहीं पाता, और उसकी इच्छाएँ कुछ भी पूरी नहीं हो पाती है ; क्योंकि For Private And Personal Use Only निर्दन्तः करटी हयो गतजबचन्द्रं विना शर्वरी, निर्गन्धं कुसुमं सरो गत जलं छायाविहीनस्तरुः । भोज्यं निर्लवणं सुतो गतगुणश्चारित्रहीनो यतिः, निर्द्रव्यं भवनं न राजति तथा धर्मं विना मानवः ॥ ४१ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134