Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० श्री कामघट कथानकम __ और इधर आगे ( सामने में ) राक्षस भी मिला, उसी समय उसने कहा-हे नरश्रेष्ठ, अपनी बात को पालन (पूरा) करो। क्योंकि संसारस्य त्वसारस्य, वाचा सारा हि देहिनाम् । वाचा विचलिता यस्य, सुकृतं तेन हारितम् ॥ ४४ ॥ इस असार संसार में प्राणियों की वाणी ही सार है, जिसने अपनी वाणी से विचलित ( अलग) हुआ उसने अपना पुण्य गमा डाला ।। ४४ ॥ मन्त्रिणोक्तं यथाऽस्तु पालयिष्यामि परं किमनेन मेऽशुचिशरीरेण भक्षितेन ? । यतःमंत्रीने कहा, ऐसा ही हो मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूंगा। लेकिन, इस अपवित्र मेरे शरीर के खाने से तुझे क्या लाभ ? क्योंकि रसाऽमृग्मांसमेदोऽस्थि - मज्जाशुक्राणि धातवः । सप्तैव दश वैकेषां,रोमत्वकस्नायुभिः सह ॥ ४५ ॥ अमेध्यपूर्णे कृमिजालसंकुले, स्वभावदुर्गन्ध अशौचनिहवे । कलेवरे मूत्रपुरीषभाजने, रमन्ति मूढा विरमन्ति पण्डिताः ॥ ४६॥ अजिनपटलगूढं पिंजरं कीकसानां, यमवदननिषण्णं रोगभोगीन्द्रगेहम् । कुणपकुणपिगन्धैः पूरितं बाढगाढं, कथमिव मनुजानां प्रीतये स्वाच्छरीरम् ? ॥ ४७॥ रस, रक्त, मांस, मेद (चर्वी ) अस्थि ( हड्डी ), मज्जा और शुक्र (वीर्य ) इन सात धातुओं से अथवा किन्ही के मत से रोम (रोगंटे) त्वचा (चामड़ी) और स्नायु (नसें ) इन तीनों से युक्त दश धातुओं से बने हुए, अपवित्रता से भरे हुए कीड़ों के समुदाय से युक्त स्वभाव से ही दुर्गन्धि वाले अपवित्रता जिसमें छिपी है ऐसे मूत्र-पुरीष (पेशाब-पाखाना) के घर इस शरीर में मूढ़-मूर्ख लोग रमण (प्रेम) करते हैं और पण्डित (बुद्धिमान् ) लोग रमण नहीं करते हैं। हड्डियों के ढांचा का पिंजरा चर्म के समूह से गूढ़ ( ढंका हुआ) है। यमराज के मुंह में रहा हुआ, रोग रूपी सर्पराज का घर, यूं और खटमल के जैसी गंधों से पूर्ण यह शरीर किस तरह किसी की प्रीति (राग) के लिए हो सकता है अर्थात् यह नश्वर अपवित्र दुर्गन्धयुक्त शरीर किसी भी बुद्धिमान के प्रीति के योग्य नहीं है ।। ४५ ॥ ४६ ।। ४७ ।। For Private And Personal Use Only

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