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श्री कामघट कथानकम् भाववैचित्र्यमपि घटते, तस्मात्सुरांगेभ्यो मदशक्तिरिवेति भूतचिद्वादो निराकृतः । न प्रत्यक्षप्रमाणेनैवाप्रत्यक्षा अपि सहस्रशः पदार्था अवगन्तुं शक्यास्तस्मादनुमानमपि प्रमाणे धूमादिलिंगदर्शनेन पर्वतादिगतं ज्वलनादि लिंगिमनुमातुं प्रामाणिकैरभ्युपगम्यत एव । तेनादृष्टानामपि पदार्थानां सिद्धौ सत्यां नाऽयं नास्तिकवादः प्रमाणपदवीमधिरोहतोति, तस्मात्याज्य एव सः। इति मंत्रिणोक्तं निशम्यापि राज्ञा स्वकदाग्रहो न मुक्तस्तेन राज्ञः पापबुद्धिरिति लोके नाम जातं मंत्रिणस्तु धमबुद्धिरिति । ततस्तयोः सर्वदा पुण्यपापविषये विवादो भवति स्म । पुनमंत्री तु तं धर्मात्मानं विधातुं तेन नृपेण सह नित्यमेव विवदते स्म । यतः--
राजा की ऐसी बात को सुन कर मन्त्री ने उत्तर दिया। हे महाराज, आपका ऐसा कहना ठीक नहीं है, सभी प्रमाणों से सिद्ध ( साबित की हुई ) आत्मा को आप झूठी नहीं कह सकते। और यदि दूसरे लोक में जाने वाली आत्मा की सिद्धि नहीं हो तब ही “जब तक जीवे, सुख पूर्वक जीवे" इत्यादि आपका कहना ठीक हो सकता है। इसलिए, तब तक ( पहिले ) आत्मा की सिद्धि सुनिए
"मैं सुखी हूं, मैं दुःखी हूं" इस निश्चयात्मक ज्ञान से आत्मा शरीर से अलश प्रतीत होता है, क्योंकि शरीर आदि का संघात ( समुदाय ) जड़ है, उसमें इस तरह की प्रतीति (मैं सुखी हूं, मैं दुःखी हूं... ) नहीं हो सकती है। और भी-'मैं घड़े को जानता हूं' इस वाक्य में, कर्ता, कर्म और क्रिया ये तीन चीजें दीखती हैं, वहां कर्म (घड़ा) और क्रिया ( जानता हूं) को स्वीकार करके कर्ता को क्यों नहीं मानते है क्योंकि, जड़ शरीर में कर्त्तापन ही नहीं हो सकता, यदि चारों महाभूतों की चेतनता से शरीर में चेतनता है, ऐसा माना जाय तो यह ठीक नहीं। क्योंकि-"मैंने देखा, सुना, स्पर्श किया, सूंघा, जाना, याद किया, खाया, पीया और आस्वाद लिया ( चखा , इस तरह एक कर्ता सम्बन्धी ये अनेक भाव भूतचिद्वाद में घटित नहीं हो सकते, क्योंकि भूतचिद्वाद को स्वीकार करने से अनेक चेतन का प्रसंग ( दोष) हो जाता है। गौ आदि पशुओं का बच्चा (बछड़ा) पहले अपने आप ही (बिना सिखलाये हुए ही ) दूध पीने के लिए उठ-खड़ा होता है, वह भी दूसरे जन्म के अनुभव (ज्ञान ) के बिना नहीं हो सकता है, इससे आत्मा का दूसरे लोक में जाना सिद्ध ( साबित ) होता है और जब आत्मा का दूसरे लोक में जाना सिद्ध होता है तब पाप-पुण्य-कर्म का बन्धन भी सिद्ध होता है। कर्म की विचित्रता से स्वभाव की विचित्रता भी होती है, इस लिए, शराब से मदशक्ति के जैसा इस भूतचिद्वाद का निराकरण (खण्डन ) हो गया। और प्रत्यक्ष प्रमाण से ही सैकड़ों अप्रत्यक्ष पदार्थ भी नहीं जाने जा सकते, इस लिए अनुमान मी प्रमाण (दूसरा प्रमाण ) मानना पड़ेगा। क्योंकि, धूआँ आदि लिंग को देखने से पर्वत आदि में रहा हुआ अग्नि आदि लिंगी का अनुमान प्रमाणिकों ( तर्क शास्त्रियों) द्वारा जाना जाता है, इस लिए अदृष्ट ( बिना देखे हए ) पदार्थों के भी सिद्धि होने पर यह नास्तिकवाद (केवल प्रत्यक्ष ही प्रमाण-प्रमाण ) मानने योग्य नहीं
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