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श्री कामघट कथानकम्
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राज्यदः
राज्यार्थिष्वपि तत्किं यन्न करोति ?
धर्म, धन की इच्छावालों को धन देता है, कामी को काम देता है, सौभाग्य के चाहने वालों को सौभाग्य देता है, और क्या ? पुत्र की इच्छा वालों को पुत्र देता है, राज्य के प्रार्थी को भी राज्य देता है। या अधिक कहने से क्या ? इस संसार में वह क्या है जो धर्म नहीं करता ? अर्थात् सब कुछ करता है, स्वर्ग और मोक्ष भी धर्म देता है ॥ ७ ॥
किमथवा
नानाविकल्पैर्नृणां, किं च कुरुते स्वर्गापवर्गावपि ॥ ७ ॥
वापीवप्रविहारवर्णवनिता विब्राह्मणवादिवारिविबुधा विद्यावीर विवेकवित्तविनया
वस्त्रं
अथात्र धर्मबुद्धिशालिनो मतिसागरनाम्नो मंत्रिणः पापबुद्धिधारिणो जितारिनाम्नो राज्ञश्च स्वस्वमन्तव्यधर्माधर्मविचारे विवादो जातः । अतस्तद्विषयकमिदं कामघटकथानकम् - यथाऽस्मिन्नेव दक्षिणभरतक्षेत्रे श्री पुरनामकं नगरमभूत्तत्कथंभूतं सप्तविंशतिवकारेण युतम् । यतः
अब यहां धार्मिक बुद्धिवाला मतिसागर नाम के मंत्री का और अधार्मिक (पाप) बुद्धिवाला जितारि नाम के राजा का अपना अपना मंतव्य रूप धर्म-अधर्म के विचार में विवाद खड़ा हो गया, उसी विषय को लेकर यह कामघट कथानक है । इसी भरत क्षेत्र में श्रीपुर नाम का नगर (शहर) हुआ। वह नगर सत्ताइस वकार से युक्त था जैसे :
वाम
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वारणवाजिवेसरवराः
वनं
वेश्या
वाचंयमो
स्युर्यत्र
३
वाटिका,
वणवाहिनी | वल्लिका,
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तत्पत्तनम् ॥ ८ ॥
वापी ( बावड़ी ), वप्र ( किला ), विहार, वर्ण ( ब्राह्मण आदि चार जाति ), वनिता ( स्त्री ), वाग्मी ( वक्ता - स्पीकर ) वन, वाटिका ( वगीचा ), विद्वान्, ब्राह्मण, वादी ( विवाद करने वाला) वारि (जल ) विबुध (देवता), वेश्या, वणिक् ( व्यापारी ), वाहिनी ( सेना ) विद्या, वीर, विवेक, वित्त ( धन-दौलत ),. विनय, घाचंयम ( वाणी पर संयम रखने बाला - साधु-मुनि ), वल्लिका ( लता ), वस्त्र, वारण (हाथी), वाजि ( घोड़ा ), वेसर ( खच्चर ) ये सब के सब जहां वर ( अच्छे ) थे ऐसा वह नगर था ॥ ८ ॥
तत्र जितारिनामा पृथिवीपतिरासीत्परं स नास्तिको जीवाजीवादितत्त्वानि न मन्यते स्मेति सप्त व्यसनादरपरोऽजनि । यथा