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श्री कामघट कथानकम्
वहां जितारि नामका राजा था, पर वह नास्तिक होने के कारण, जीव-अजीव आदि तत्वों को नहीं मानता था और सात दुर्व्यसनों का सेवी था, जैसे
यू तञ्च मांसश्च सुरा च वेश्या, पापद्धिचौरी परदारसेवा। एतानि सप्त व्यसनानि लोके, घोरातिघोरं नरकं नयन्ति ॥ ६॥
जुआ खेलना, मांस खाना, शराब पीना, वेश्या गमन, पाप का धन, चोरी करना, दूसरे की स्त्री की सेवा ( व्यभिचार ) ये सात व्यसन इस संसार में अत्यन्त कष्ट-प्रद नरक में ले जाते हैं ।। ६॥
पापतः समं भव्यं भवत्येवंविधो बुद्धिमान् स राजा वर्तते, तस्य सम्यक्त्वधारी जीवाजीवादितचविदास्तिको मतिसागराभिधोऽमात्योऽतीवमान्योऽभूत् । कुतो मंत्रिणं विना राज्यमपि नो चलति शोभते च । यतो नीतिशास्त्रऽप्युक्तम्
पाप से सब भव्य ( अच्छा ) होता है, इस तरह का बुद्धिमान् (व्यंग से बेवकूफ) वह राजा था और सम्यक्त्व धारी जीव अजीव आदि तत्वों को जानने वाला आस्तिक बुद्धि वाला मतिसागर नाम का उसका मंत्री था जो अत्यन्त मान्य हुआ। क्योंकि-मंत्री के विना राज्य भी नहीं चल सकता और न शोभा पासकता है। नीति शास्त्र में भी कहा है
राज्यं निःसचिवं गतप्रहरणं सैन्यं विनेत्रं मुखं, वर्षा निर्जलदा धनी च कृपणो भोज्यं तथाज्यं विना । दुःशीला दयिता सुहृन्निकृतिमान् राजा प्रतापोज्झितः, शिष्यो भक्तिविवर्जितो नहि विना धर्म नरः शस्यते ॥ १०॥
विना मंत्री का राज्य, विना अस्त्र-शस्त्र की सेना, विना आंख का मुख, विना वादल की वर्षा, कंजूस धनी, विना घी का भोजन, व्यभिचारिणी स्त्री, कपटी मित्र, विना प्रताप का राजा, विना भक्ति वाला शिष्य और विना धर्म का मनुष्य नहीं शोभता है ।। १०॥
अथैकदा राजा मंत्रिणं प्रति वदति स्म—राज्यादिकं समस्तं पापेनैव भवति । तदा मंत्र्याह-भो राजन्नेवं मा बहि, पापफलन्तु प्रत्यक्षमस्मिन् लोके दृश्यते यतः
इसके वाद एक समय राजाने मंत्री को बोला कि राज्य आदि सब कुछ ( अच्छा ) पाप से ही होता है। तब मंत्री ने कहा-हे राजन् ! ऐसा मत कहो, पाप का फल तो इस लोक में प्रत्यक्ष देखा जाता है। क्योंकि
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