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आस्तिक, भगवद्-भक्ति-निष्ठ मंत्रीने पापबुद्धि राजा को धर्म में श्रद्धालु बनाने के लिए सब कुछ त्याग कर विदेश गया और वहां अपना सदाचरण के प्रभाव से इच्छित-फल-दाता 'कामघट' को प्राप्त करके उसके प्रभाव से राजा को चमत्कृत कर धर्म-निष्ठ बनाया, इसी लिए, इस कथा का नाम 'कामघट कथानकम' हुआ। दूसरी कथा में पुनः अपरिचित दूर देश में जाकर सदाचार के ही बदौलत अधिक प्रभावशाली होकर मंत्रीने धर्म-निष्ठा में बची खुची शंका को दूर कर राजा को दृढ़ धर्म-निष्ठ बना दिया। यही कथा का सार है। इस में मानव-जीवनोपयोगी उपदेशप्रद सरल-सुन्दर भाव-गर्भित अनेक श्लोक भी हैं, जिन से पुस्तक की सुन्दरता सुवर्ण में सुगंध की तरह और बढ़ गई है।
संस्कृत में पुस्तक के होने से सर्व साधारण को इसके लाभ से वञ्चित होते देख कर सत्साहित्य के प्रचार और प्रसार के चिराकांक्षी समाज-सेवी श्रीयुत इन्द्रचन्द्र नाहटा ने इसका हिन्दी-अनुवाद करने को मुझे सस्नेह अनुरोध किया था। उसी का परिणाम स्वरूप यह समाज की साहित्यिक सेवा के लिए तैयार है।
पुस्तक का सम्पादन कैसा है, इसका निर्णय गुण-दोष-विवेकी सजन पाठक ही करेंगे। भ्रान्तियों का होना कोई असम्भव नहीं। अतः जो महाशय, वास्तविक त्रुटियों की सूचना देंगे, उनका बहुत आभारी बनूंगा और दूसरे संस्करण में तत्संशोधन पूर्वक इसको और सुन्दरतम रूप देने की कोशिश करूंगा।
सहृदय-विधेय :गङ्गाधर मिश्र
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