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आयुष्य प्राप्त होता है । परन्तु ऐसे भी बहुतसे मनुष्य पैदा होते हैं जिनकी आयु दीर्घ नहीं रहती, और उनको वात, पित्त कफादिक दोषोंका उद्रेक होता रहता है। उनके द्वारा कभी शीत और कभी उष्ण व कालक्रमसे मिथ्या--आहार सेवन करनेमें आता है। इसलिये अनेक प्रकार के रोगोंसे पीडित होते हैं। वे नहीं जानते कि कोनसा आहार ग्रहण करना चाहिये और कोनसा नहीं लेना चाहिये । इसलिये उनके स्वास्थ्यरक्षा के लिये योग्य उपाय आप बतावें । आप शरणागतों के रक्षक है । इस प्रकार भरतके प्रार्थना करनेपर, आदिनाथ भगवंतने दिव्यध्वनिके द्वारा पुरुषका लक्षण, शरीर, शरीरका भेद , दोषोत्पत्ति, चिकित्सा, कालभेद आदि सभी बातोंका विस्तारसे वर्णन किया। तदनंतर उनके शिष्य गणधर व बादके तीर्थंकरोंने व मुनियोने आयुर्वेदका प्रकाश उसी प्रकार किया! वह शास्त्र एक समुद्र के समान है, गंभीर है। उससे एक बूंद को लेकर इस कल्याणकारक की रचना हुई है अथवा उस शास्त्रकी यह एक बृन्द है। सर्वज्ञ भाषित होने के कारण सबका कल्याण करनेवाला है । इस प्रकारके ग्रंथके इतिहासको प्रकट करते हुए प्रत्येक अध्यायके अंतमें यह श्लोक लिखते हैं। इति जिनवक्त्रविनिर्गतसुशास्त्रमहांबुनिधेः। सकलपदार्यविस्तृततरंगकुलाकुलतः । उभयभवार्थसाधनतटद्वयभासुरतो निमृतमिदं हि शीकरनिभं जगदेकहितम् ॥
वैद्यकशब्दकी निरुक्ति. . वैद्य शब्दकी व्याख्या करते हुए आचार्य ने लिखा है कि जीवादिक समस्त पदार्थों के लक्षण को प्रगट करनेवाले केवलज्ञान को विद्या कहते हैं । उस विद्या से इस ग्रंथ की उत्पत्ति हुई है, इसलिए इसे वैद्य कहते हैं । इस ग्रंथके अध्ययन व मनन करने वाले विद्वान् को भी वैद्य कहते हैं। यथा..
विद्येति सत्यकटकेवललोचनाख्या तस्यां यदेतदुपपत्रमुदारशास्त्रम । वैद्यं वदंति पदशास्त्रविशेषणज्ञा एतद्विचिंत्य च पठति च तेपि वैद्याः ॥
अ. १ श्लो. १८ क्या ही सुंदर अर्थ आचार्यने वैद्य शब्द का किया है। इस में किसी को विवाद ही नहीं हो सकता।
आयुर्वेद. - इस शास्त्र को आयुर्वेद शास्त्र भी कहते हैं । उस का कारण यह है कि इस शास्त्र में सर्वइतीर्थकरके द्वारा उपदिष्ट तत्वका विवेचन किया है। इसके हानसे मनुष्य को आधुसंबंधी समस्त बाते मालुम हो जाती है या इन बातो को मालुम करनेके लिए
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