Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंक 1. अंक :- पुं० [अङ्क अच्] गोद। आरोपितं यगिरिशेन पश्चादनन्यनारीकमनीयमङ्कम्।। 1/37 स्वयं शिवजी ने उन नितम्बों को अपनी गोद में रखा, जहाँ तक पहुँचने की कोई और स्त्री साध भी नहीं कर सकती। उत्तानपाणिद्वय सन्निवेशात् प्रफुल्ल राजीव मिवांकमध्ये। 3/45 अपनी गोद में कमल के समान दोनों हथेलियों को ऊपर किए हुए, वे बिना हिले-डुले बैठे हैं। अंकमारोपयामास लज्जमानामरुन्धती। 6/91 अरुन्धतीजी ने उन्हें झट-उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया। 2. उत्संग :-[उद्+सञ्जज+घञ्] गोद। वनेचराणां वनिता सखानां दरीगृहोत्संग निषक्तभासः। 1/10 यहाँ के किरात लोग जब अपनी-अपनी प्रियतमाओं के साथ उन गुफाओं में विहार करने आते हैं। ऋतुजां नयतः स्मरामि ते शरमुत्सङ्ग निषण्ण धन्वनः। 4/23 तुम्हारा वह गोद में धनुष रखकर बाण सीधा करना मुझे भूलता नहीं। अंग 1. अंग :-अव्यय [अङ्ग+अच्] अंग, शरीर। असंभृतं मण्डल मङ्गयष्टेरनासवाख्यं करणं मदस्या। 1/32 उनके शरीर में वह यौवन फूट पड़ा जो शरीर की लता का स्वाभाविक श्रृंगार है, जो मदिरा के बिना ही मन को मतवाला बना देता है। शेषाङ्ग निर्माण विधौ विधातुर्लावण्य उत्पाद्य इवास यत्नः। 1/35 इसलिए शेष अंगों को बनाने के लिए सुन्दरता की और सामग्री फिर जुटाने में ब्रह्माजी को बड़ा कष्ट उठाना पड़ा। ऐरावतस्फालन कर्कशेन हस्तेन पस्पर्श तदङ्गमिन्द्रः। 3/22 इन्द्र ने उसकी पीठ पर वह हाथ फेरकर उसे उत्साहित किया, जो ऐरावत को अंकुश लगाते-लगाते कड़ा पड़ गया था। For Private And Personal Use Only

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