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आंतरिक प्रेरणा से प्रेरित होकर पश्चिमी देशों में जैन धर्म का प्रचार करने हेतु आप सन् १९७० में जिनेवा में द्वितीय आध्यात्मिक शिखर परिषद् में गए तथा जैन धर्म के सिद्धांतों की अजय घोषणा की, और जैन धर्म में नई क्रान्ति लाकर नये इतिहास का सर्जन किया। विश्वविद्यालय में सन् १९७१ में सर्वधर्म समभाव शाखा के आप प्राध्यापक बने।
सन् १९८१ में सेंडीयेगो के सागर तट पर सत्रह दिन तक ध्यान, साधना करते हुए आपको दिव्य आत्मज्ञान के साथ सोहं का साक्षात्कार हुआ, आप विश्वमानव संत बने और मुक्त प्रवासी रहे।
वर्तमान में आपकी मुख्य प्रवृतियाँ - १) आप जैन मेडिटेशन इन्टरनेशनल सेन्टर, न्यूयॉर्क, दिव्य ज्ञान सोसायटी, मुंबई और शाकाहार परिषद् के संस्थापक तथा प्रेरक होने के नाते आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं। २)आपने दिव्य वाणी तथा अद्भुत लेखन शक्ति के माध्यम से अमरीका, केनेडा, यूरोप, अफ्रीका, सिंगापुर, जापान, हाँगकाँग, बैंकॉक, मलेशिया, स्विट्ज़रलेन्ड में अहिंसा तथा अनेकान्त का प्रचार करके जैन सेन्टरों की स्थापना करवाई और असंख्य लोगों का सही मार्गदर्शन देकर व्यसन मुक्त तथा शाकाहारी बनाने का प्रयत्न किया। ३) आपने स्वानुभव, गहन अभ्यास तथा प्रबुद्ध जीवन के सारांश स्वरूप अनेक हिंदी, गुजराती तथा अंग्रेज़ी पुस्तकों का सृजन किया, जो हमारे अज्ञानमय जीवन में दीपक की भाँति प्रकाश फैला रही हैं।
श्री चित्रभानु एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने जैन धर्म को संप्रदायों की दीवारों से ऊपर उठाकर विश्व के मानव मात्र को मैत्री और शन्ति प्राप्त हो, इस भाव से संयुक्त राष्ट्र संघ में उसे प्रतिष्ठित करवाया है। आप आज भी निर्दभ और निर्भयता से सुषुप्त मानव को जागृत करते हुए उसे आत्मज्ञान से प्रबुद्ध कर रहे हैं। हज़ारों नहीं लाखों लोगों को हिंसा के पापमय परिणाम का ख्याल करवा कर शाकाहारी और करुणामय अहिंसाप्रेमी बना रहे हैं।
आपके विदेशी विद्यार्थियों और साधकों की संख्या अगणित है। विदेशों के अलग-अलग प्रदेशों में आपके द्वारा प्रस्थापित ६७ धर्म प्रचार
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