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दीपक की लौ
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विदेह के राजा के पास मल्ली का हाथ मांगते हुए संदेशवाहक के हाथों पत्र भेज दिए।
सर्वप्रथम पहुंचनेवाले संदेशवाहक ने जो पत्र दिया, उसमें लिखा था, 'मैं आपकी पुत्री से विवाह करने के लिए तत्पर हूं, और इसके बदले में आप जो कुछ भी कहेंगे, उसे करने के लिए तैयार हूं। लेकिन यदि आप मेरे इस प्रस्ताव को नहीं मानेंगे, तो हमारे परस्पर राज्यों में युद्ध छिड़ जाएगा।' दूसरा संदेशवाहक भी इसी तरह का पत्र लेकर आया। एक ही महीने में पड़ोस के छह आसक्त राजाओं से इसी तरह के पत्र आ गए। इन छह संदेशवाहकों से एक तरह के पत्र पाकर राजा कुंभक चिंतित हो उठा और उसने अपने पहरेदारों को बुलाकर सभी संदेशवाहकों को निकाल देने की आज्ञा दी।
अतः ठुकराए गए सभी छह राजाओं ने परस्पर सलाह करके विदेह पर एक साथ चढ़ाई करने का निर्णय लिया। वे अपनी सेनाएँ लेकर विदेह की सरहद पर आ पहुंचे। जब वे विदेह के राजा के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे थे, उनके सैनिकों ने विदेह के छोटे राज्य को चारों ओर से घेर लिया और विदेह के राजा को बहुत ही नाजुक स्थिति में डाल दिया । वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। न तो वह तय कर पा रहा था कि अपनी पुत्री का विवाह किस राजा से संपन्न कराए, न ही उसकी छोटी सी सेना इतनी शक्तिशाली थी कि हमलावरों को पछाड़ सके।
मल्ली ने अपने पिता की परेशानी भाँप ली और उनसे कहा, 'पिताजी, आप परेशान क्यों हो रहे हैं? चिंता करने का कोई कारण ही नहीं है। इनमें से प्रत्येक राजा के पास संदेश भेज दीजिए कि मैं उससे शादी करने के लिए तैयार हूँ।'
'क्या कह रही हो, बेटी?' राजा कुंभक ने कहा, 'तुम शादी करने के लिए तैयार हो ? लेकिन तुम किससे शादी करोगी? यहाँ तो छह-छह हैं !'
'उसकी आप चिंता न करें,' मल्ली ने इत्मीनान से कहा, 'प्रत्येक राजा को मेरे महल में पंद्रह दिन बाद आने को कहें और यह भी कहें कि मैं अपनी पुत्री का हाथ आपके हाथों में देने के लिए तैयार हूँ।'
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