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विराम चिह्न की कला
के लिए हमें पूरे दिल से मेहनत करनी होगी। हम उस सहज स्थिति की ओर तभी बढ़ सकते हैं जब हम स्वयं की निंदा करना बंद करेंगे, अपने आपको कोसना छोड़ देंगे। हम दूसरों से प्रशंसा, अभिमत, अनुमोदन आदि की चाहत पर रोक लगा देंगे। जब हम इस तरह की पुरानी सोच पर विराम चिह्न लगाएँगे, तब कितनी शांति से जीवन व्यतीत करने लगेंगे!
स्वयं के साथ शांति से बढ़कर कोई सुख इस दुनियां में नहीं है। यही खोजने के लिए हम दुनिया भर की खुशियों के पीछे भागते रहते हैं। हम सुंदर मनस्थिति में रहना चाहते हैं। लेकिन जब हम इन क्षणिक बाहरी खुशियों का सहारा लेते हैं, तब उनका प्रभाव समाप्त होने पर हम दुःखी हो जाते हैं, और तब हमें विदित होता है कि स्वयं के साथ सहजता से रहकर चिरस्थायी शांति प्राप्त करना क्यों महत्त्वपूर्ण है।
इसका तात्पर्य यह नहीं है कि आप बाहरी दुनियां को त्याग दें। आपको संसार के सौंदर्य और वैभव को सराहना चाहिए। आपके पास पाँच सुंदर इंद्रियाँ हैं। दरअसल आपकी इंद्रियाँ इतनी साफ और स्वच्छ रखी जाती हैं ताकि आपको अन्य लोगों से भी अधिक स्पष्टता से चीजें दिखाई दें, ध्वनियाँ सुनाई दें, एवं स्वाद और सुंगध, भावनाओं और अनुभूतियों को अच्छी तरह से महसूस कर सकें। जब कोई सुंदर वस्तु आपके सामने आ जाए, तो आप उसे वैसे ही देखें जैसी वह है। कहने की बात यह है कि: आप मात्र अपनी इंद्रियों पर निर्भर नहीं हैं। जब आप आँखें बंद कर लेते हैं, तब भी सौंदर्य रहता है। इस तरह आप भीतर और बाहर दोनों जगह विद्यमान सौंदर्य को देख पाते हैं।
हममें से अधिकांश लोगों की समस्या यह है कि हम बाहरी सौंदर्य को तो देख पाते हैं, मगर भीतर जो सौंदर्य है, उसे नहीं। क्या यह विचित्र बात नहीं है कि इतने वर्षों तक बाहरी सौंदर्य को देखते रहने के बाद भी, जब हम आँखें बंद करते हैं, तो उसे अपने पास बनाए रखने में असमर्थ हो जाते हैं? जैसे ही हम आँखें बंद करते हैं, अंधेरा छा जाता है। इतने वर्षों तक बाहरी सौंदर्य को निहारते रहने के बाद भी अगर हमें भीतरी सौंदर्य को पहचानने का सूत्र या संकेत नहीं मिला, तो उन वर्षों के प्रयास का क्या प्रयोजन? आँखें खोलकर सौंदर्य के अनेक रूपों को देखना और सराहना
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